Dharmik Katha: आखिर कैसे एक ब्राह्मण भक्त को छोड़ भील के भक्ति भाव से प्रसन्न हुए भोलेनाथ

Edited By Jyoti,Updated: 23 Sep, 2022 11:42 AM

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एक पर्वत पर शिव जी का एक सुन्दर मंदिर था। वहां बहुत-से लोग शिव जी की पूजा के लिए आते थे। इनमें दो भक्त मुख्य थे-एक ब्राह्मण और दूसरा भील। ब्राह्मण प्रतिदिन शिव जी का फूलों से अभिषेक करता, भील जल से शिव जी का अभिषेक करता और भक्ति भाव से उनके सामने...

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एक पर्वत पर शिव जी का एक सुन्दर मंदिर था। वहां बहुत-से लोग शिव जी की पूजा के लिए आते थे। इनमें दो भक्त मुख्य थे-एक ब्राह्मण और दूसरा भील। ब्राह्मण प्रतिदिन शिव जी का फूलों से अभिषेक करता, भील जल से शिव जी का अभिषेक करता और भक्ति भाव से उनके सामने नृत्य करता था।

एक दिन ब्राह्मण जब मंदिर में गया तो उसने देखा कि शिव जी भील से वार्तालाप कर रहे हैं। ब्राह्मण को यह अच्छा न लगा। उसने सोचा, ‘‘मैं  ब्राह्मण हूं, भांति-भांति के बहुमूल्य पदार्थों से भगवान की पूजा करता हूं, फिर भी भगवान मुझे छोड़कर इस भील से वार्तालाप करते हैं।’’
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उसने शिव जी से पूछा, ‘‘भगवन्, क्या आप मुझसे असंतुष्ट हैं? 

मैं ऊंचे कुल में पैदा हुआ हूं तथा बहुमूल्य पदार्थों से आपकी पूजा करता हूं, जबकि यह भील निकृष्ट और अपवित्र पदार्थों से आपकी उपासना करता है, फिर भी आप इसे चाहते हैं।’’

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शिव जी ने उत्तर दिया, ‘‘ब्राह्मण, तुम ठीक कहते हो, परन्तु इस भील का जितना स्नेह मुझ पर है, उतना तुम्हारा नहीं।’’

एक दिन शिव जी ने अपनी एक आंख फोड़ ली। ब्राह्मण नियत समय पर पूजा करने आया। उसने देखा शिव जी की एक आंख नहीं है। पूजा करके वह अपने घर लौट गया। उसके बाद भील आया। जब उसने देखा कि शिव जी की एक आंख नहीं है तो उसने झट अपनी आंख निकालकर उनको लगा दी। दूसरे दिन ब्राह्मण फिर आया। 
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शिव जी की दोनों आंखें देखकर उसे अत्यंत आश्चर्य  हुआ। शिवजी ने कहा, ‘‘ब्राह्मण इस आंख को गौर से देखो यह उस भील की आंख है जो उसने मुझे प्रेमपूर्वक समर्पित की है। तुमने तो ऐसा सोचा तक नहीं। इसीलिए मैं कहता हूं कि भील ही मेरा सच्चा भक्त है।’’ 

शिव की कृपा से भील की आंख भी ठीक हो गई और उसके दिव्य चक्षु भी खुल गए।

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