Kundli Tv- क्या सच में श्री हरि ने अपनी ही पत्नी को दिया श्राप

Edited By Lata,Updated: 26 Jul, 2018 09:51 AM

did really shri hari hurt his wife

एक बार जब भगवान श्री हरि वैकुण्ठ लोक में माता लक्ष्मी जी के साथ विराजित थे। उसी समय अश्व पर सवार होकर रेवंत का आगमन हुआ। वह अश्व देखने में बहुत ही आकर्षक था कि मां लक्ष्मी उसको ध्यान से देखने में मग्न हो गई। विष्णु जी के बार-बार बुलाने पर भी उनका...

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एक बार जब भगवान श्री हरि वैकुण्ठ लोक में माता लक्ष्मी जी के साथ विराजित थे। उसी समय अश्व पर सवार होकर रेवंत का आगमन हुआ। वह अश्व देखने में बहुत ही आकर्षक था कि मां लक्ष्मी उसको ध्यान से देखने में मग्न हो गई। विष्णु जी के बार-बार बुलाने पर भी उनका ध्यान अश्व की ओर से नहीं हटा। इस बात पर भगवान ने क्रोधित होकर माता को श्राप दे दिया कि मेरे झकझोरने पर भी तुम्हारा ध्यान इसी में लगा है। अतः तुम भी अश्वी हो जाओ।

कुछ समय के बाद जब उनका ध्यान अश्व से हटा तो उन्हें श्राप का पता चला। उन्होंने भगवान की वंदना की और उनसे क्षमा मांगी। प्रभु ने कहा कि श्राप तो वे वापिस नहीं ले सकते किंतू उसे कम कर सकते हैं। तुम्हारे अश्व रूप में पुत्र प्रसव के बाद तुम्हे इस योनि से मुक्ति मिलेगी और तुम पुनः मेरे पास वापिस लौटोगी।
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अश्वी बनी हुई मां लक्ष्मी यमुना और तमसा नदी के संगम पर भगवान शिव की तपस्या करने लगी। उनके तप से खुश होकर भगवान शिव माता पार्वती के साथ आए और उनके तप का कारण पूछा। लक्ष्मी जी ने अश्वी होने का सब वृतांत बताया। उनसे अपने उद्धार की प्रार्थना करी। तब भगवान ने कहा- “देवी ! आप चिंता न करें। इसके लिए विष्णु जी को अश्व रूप धारणकर आपके साथ रमण करना होगा। तभी आपसे अपने जैसा ही पुत्र उत्पन्न करने पर आप उनके पास शीघ्र वापिस जा सकोगे।”

शंकर जी ने विष्णु जी को अश्व बनने के लिए आग्रह किया। उनके बार-बार कहने पर ही श्री हरि अश्व बनने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद वह यमुना और तपसा के संगम पर जहां लक्ष्मी जी अश्वी का रूप धारण कर तपस्या कर रही थी। भगवान को अश्व रूप में आया देखकर अश्वी रूप धारी लक्ष्मी जी काफी प्रसन्न हुई। दोनों एक साथ विचरण एवं रमण करने लगे। सही समय आने पर अश्वी के गर्भ से एक सुन्दर बालक का जन्म हुआ। तत्पश्चात लक्ष्मी जी वैकुण्ठ लोक श्री हरि विष्णु के पास चली गई। 
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ययाति के पुत्र तुर्वसु संतान हीन थे और पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कर रहे थे। उस बालक के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उन्होंने ली। उसका नाम हैहय रखा गया। बाद में हैहय के वंशज ही हैहयवंशी कहलाए।
 

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