Edited By Lata,Updated: 06 Jun, 2019 03:03 PM
वैसे ऐसा अक्सर देखा गया है कि जब भी किसी को सफलता मिलती है, तो वह खुशी के मारे उछलने लगता है और शोर मचाता है कि उसे उसके कामों में सक्सेस मिली है।
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वैसे ऐसा अक्सर देखा गया है कि जब भी किसी को सफलता मिलती है, तो वह खुशी के मारे उछलने लगता है और शोर मचाता है कि उसे उसके कामों में सक्सेस मिली है। जबकि ऐसा बिलकुल नहीं करना चाहिए। सुंदरकांड में हनुमानजी ने हमें बताया है कि सफल होने पर कुछ देर के लिए शांत हो जाना चाहिए। अगर हमारी सफलता की कहानी कोई दूसरा बयान करेगा तो कामयाबी और बढ़ी हो जाती है और उसके बाद जी खुशी मिलती है उसका कोई ठिकाना नहीं होता है। आइए जानें किसने सुनाई किसकी सफलता की गाथा।
सुंदरकांड में हनुमान जी ने माता सीता को श्रीराम का संदेश दिया, लंका दहन किया। ये दोनों काम करने के बाद जब हनुमान श्रीराम के पास लौट आए तो ये उनकी सफलता की चरम सीमा थी। वे चाहते तो अपने इस काम को खुद ही श्रीराम के सामने बयान कर सकते थे, लेकिन हनुमान जो करके आए, उसकी गाथा श्रीराम को जामवंत ने सुनाई।
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इस पर तुलसीदास जी ने लिखा है कि-
नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी। सहसहुं मुख न जाइ सो बरनी।।
पवनतनय के चरित्र सुहाए। जामवंत रघुपतिहि सुनाए।।
जामवंत श्रीराम से कहते हैं कि- हे नाथ, पवनपुत्र हनुमान ने जो करनी की है यानि जो काम किया है, उसका हजार मुखों से भी वर्णन नहीं किया जा सकता। तब जामवंत ने हनुमान जी के सुंदर कार्य को श्रीरघुनाथ जी को बताया।
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सुनत कृपानिधि मन अति भाए। पुनि हनुमान हरषि हियं लाए।।
सफलता की गाथा सुनने पर श्रीरामचंद्र के मन को हनुमान जी बहुत ही अच्छे लगे। उन्होंने हर्षित होकर हनुमान को हृदय से लगा लिया। परमात्मा के हृदय में स्थान मिल जाना अपने प्रयासों का सबसे बड़ा पुरस्कार है।