Edited By Jyoti,Updated: 09 Aug, 2018 05:37 PM
प्रदोष व्रत में शिव पूजन का खास माना जाता है। इस दिन शिव शंकर की आराधना करने वाले पर भोलेनाथ अधिक प्रसन्न होते हैं। लेकिन इस दिन शिव जी की पूजा किस समय करने चाहिए, कैसे करने चाहिए। इन सब बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी माना जाता है।
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प्रदोष व्रत में शिव पूजन का खास माना जाता है। इस दिन शिव शंकर की आराधना करने वाले पर भोलेनाथ अधिक प्रसन्न होते हैं। लेकिन इस दिन शिव जी की पूजा किस समय करने चाहिए, कैसे करने चाहिए। इन सब बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी माना जाता है। तो आईए जानते हैं कि इस शंभूनाथ का पूजन किल काल में और किस तरह करना चाहिए।
एेसे करें प्रदोष काल में शिव पूजा-
सूर्यास्त के 15 मिनट पहले स्नान कर धुले हुए सफ़ेद वस्त्र पहनकर शिवजी को शुद्ध जल से फिर पंचामृत से स्नान करवाएं। इसके बाद दोबारा शुद्ध जल से स्नान कराकर, वस्त्र, यज्ञोपवीत, चंदन, अक्षत, इत्र, अबीर-गुलाल अर्पित करें। मंदार, कमल, कनेर, धतूरा, गुलाब के फूल व बेलपत्र चढ़ाएं, इसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल व दक्षिणा चढ़ाकर आरती के बाद पुष्पांजलि समर्पित करें।
इसके बाद उत्तर दिशा की ओर मुख करके भगवान उमामहेश्वर का ध्यान कर प्रार्थना करें- हे उमानाथ- कर्ज, दुर्भाग्य, दरिद्रता, भय, रोग व सभी पापों का नाश करने के लिए पार्वती जी सहित पधारें और मेरी पूजा स्वीकार करें।
प्रार्थना मन्त्र भवाय भवनाशाय महादेवाय धीमते।
रुद्राय नीलकण्ठाय शर्वाय शशिमौलिने।।
उग्रायोग्राघ नाशाय भीमाय भयहारिणे।
प्रदोष व्रत में न करें ये काम
प्रदोष व्रत का पालन करने वाले व्यक्ति दिन भर आहार ग्रहण न करें। इसके अतिरिक्त दूध, फल, निंबू पानी आदि लिए जा सकते हैं।
प्रदोष काल में शिव पूजन के बाद ही भोजन ग्रहण करें।
शिव शंकर के इस व्रत का पालन करने वाले को क्रोध, आलस्य, बार-बार पानी-चाय पीना, तम्बाकू-पान मसाला खाना, बीड़ी-सिगरेट पीना, शराब पीना, जुआ खेलना, झूठ बोलना आदिन सब काम वर्जित माने जाते हैं।
व्रत का उद्यापन
मान्यता के अनुसार प्रदोष व्रत को 21 वर्ष तक करने का विधान है लेकिन समय और सामर्थ्य न हो तो 11 या 26 प्रदोष व्रत रखकर भी इसका उद्यापन किया जा सकता है। दोष व्रत के उद्यापन के लिए गणेश जी के साथ उमा-महेश्वर का पूजन करने के बाद इस मंत्र-
ॐ उमामहेश्वराभ्यां नम: से अग्नि में गाय के दुछ से बनी खीर की 108 आहुति देकर हवन करें। हवन के बाद पुण्यफल की प्राप्ति के लिए किसी ब्राह्मण को भोजन व दान-दक्षिणा देकर आशीर्वाद लें।
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