इस विधि से करें दुर्गा पूजा, देवी मां हर इच्छा करेंगी पूरी

Edited By Jyoti,Updated: 27 Sep, 2019 12:22 PM

do this durga puja with this method goddess mother will fulfill every wish

29 सितंबर से इस साल के शारदीय नवरात्र का पर्व शुरू हो रहा है। नवरात्रि अर्थात नौ रातें। हूदू धर्म के अनुसार नवरात्रि के नौ दिन नौ रात मां दुर्गा के साथ-साथ उनके नौ रूपों की आराधन का विधान है।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
29 सितंबर से इस साल के शारदीय नवरात्र का पर्व शुरू हो रहा है। नवरात्रि अर्थात नौ रातें। हिंदू धर्म के अनुसार नवरात्रि के नौ दिन नौ रात मां दुर्गा के साथ-साथ उनके नौ रूपों की आराधन का विधान है। इस दौरान नवदुर्गा की पूजा-अर्चना के साथ-साथ अखंड ज्योति आदि प्रज्वलित करने का भी महत्व है। ज्योतिष शास्त्र में दुर्गा पूजा की संपूर्ण विधि बताई गई है। माना जाता है इस ही विधि से की दुर्गा पूजा बहुत लाभकारी मानी जाती है। आइए जानते हैं इससे जुड़ी जानकारी-
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बता दें ज्योतिष विशेषज्ञों के कहे अनुसार नवरात्रि के विशेष अवसर पर तथा शतचंडी आदि वृहद् अनुष्ठानों में इस विधि का उपयोग किया जाता है। जिसमें यन्त्रस्थ कलश, गणेश, नवग्रह, मातृका, वास्तु, सप्तर्षि, सप्तचिरंजीव, 64 योगिनी, 50 क्षेत्रपाल एवं अन्यान्य देवताओं की वैदिक विधि से पूजा होती है। अखंड दीप की व्यवस्था की जाती है। अंग-न्यास और अग्न्युत्तारण आदि विधि के साथ विधिवत देवी प्रतिमा की पूजा की जाती है। इसके अलावा नवदुर्गा पूजा, ज्योतिःपूजा, बटुक-गणेशादिसहित कुमारी पूजा, अभिषेक, नान्दीश्राद्ध, रक्षाबंधन, पुण्याहवाचन, मंगलपाठ, गुरुपूजा, तीर्थावाहन, मंत्र-खान आदि, आसनशुद्धि, प्राणायाम, भूतशुद्धि, प्राण-प्रतिष्ठा, अन्तर्मातृकान्यास, बहिर्मातृकान्यास, सृष्टिन्यास, स्थितिन्यास, शक्तिकलान्यास, शिवकलान्यास, हृदयादिन्यास, षोडशान्यास, विलोम-न्यास, तत्त्वन्यास, अक्षरन्यास, व्यापकन्यास, ध्यान, पीठपूजा, विशेषार्घ्य, क्षेत्रकीलन, मन्त्र पूजा, विविध मुद्रा विधि, आवरण पूजा एवं प्रधान पूजा आदि का शास्त्रीय पद्धति के अनुसार अनुष्ठान होता है।

शास्त्रों के मुताबिक इस तरह विस्तृत विधि से पूजा करने की इच्छा रखने वाले भक्तों को अन्यान्य पूजा-पद्धतियों की सहायता से ही देवी भगवती की आराधना करके पाठ आरंभ करना चाहिए। ध्यान रहे पूजा से पूर्व साधक स्नान करके पवित्र हो। फिर आसन-शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके शुद्ध आसन पर बैठकर साथ में शुद्ध जल, पूजन-सामग्री और श्री दुर्गा सप्तशती की पुस्तक रखें।
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पुस्तक को अपने सामने काष्ठ आदि के शुद्ध आसन पर विराजमान कर दें। ललाट में अपनी रुचि के अनुसार भस्म, चंदन अथवा रोली लगा लें, शिखा बांध लें, फिर पूर्वाभिमुख होकर तत्त्व-शुद्धि के लिए चार बार आचमन करें।

उस समय निम्नांकित चार मंत्रों का जाप करें-
ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।

तत्पश्चात प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करे, फिर 'पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ' इत्यादि मंत्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर संकल्प करें। संकल्प करके देवी का ध्यान करते हुए पंचोपचार की विधि से पुस्तक की पूजा करें, योनि-मुद्रा का प्रदर्शन करके भगवती को प्रणाम करे, फिर मूल नवार्ण मंत्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें।
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