Edited By Lata,Updated: 17 Sep, 2019 10:04 AM
हमारे हिंदू धर्म में श्राद्ध का बड़ा महत्व होता है। कहते हैं कि अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करना हर किसी के लिए अनिवार्य होता है।
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हमारे हिंदू धर्म में श्राद्ध का बड़ा महत्व होता है। कहते हैं कि अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करना हर किसी के लिए अनिवार्य होता है। जो लोग किसी कारण वश श्राद्ध नहीं कर पाते तो वह केवल ब्राह्मणों को अपने पितरों के नाम पर दान-दक्षिणा भी दे सकते हैं। कई लोग पितरों की शांति व श्राद्ध के लिए गया भी जाते हैं, क्योंकि माना जाता है कि श्राद्ध के लिए गया सबसे महत्वरूर्ण स्थान माना जाता है। आज हम आपको श्राद्ध करते समय बोले जाने वाले कुछ मंत्रों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिससे आपके पूर्वज जल्दी प्रसन्न होकर आप पर अपना आशीर्वाद प्रदान करेंगे।
ऐसे करें श्राद्धः
श्राद्ध वाले दिन अहले सुबह उठकर स्नान-ध्यान करने के बाद पितृ स्थान को सबसे पहले शुद्ध कर लें। इसके बाद पंडित जी को बुलाकर पूजा और तर्पण करें। इसके बाद पितरों के लिए बनाए गए भोजन के चार ग्रास निकालें और उसमें से एक हिस्सा गाय, एक कुत्ते, एक कौए और एक अतिथि के लिए रख दें। गाय, कुत्ते और कौए को भोजन देने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं। भोजन कराने के बाद ब्राह्मण वस्त्र और दक्षिणा दें।
पिता को इस मंत्र से अर्पित करें जल-
तर्पण पिता को जल देने के लिए आप अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इसके बाद गंगा जल या अन्य जल में दूध, तिल और जौ मिलकर 3 बार पिता को जलांजलि दें।
तर्पण दादाजी को इस मंत्र के साथ दें जल-
अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्पितामह (दादाजी का नाम) लेकर बोलें, वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र से पितामह को भी 3 बार जल दें।
तर्पण माता को इस मंत्र से अर्पित करें जल-
माता को जल देने के नियम, मंत्र दोनों अलग होते हैं। क्योंकि शास्त्रों के अनुसार मां का ऋण सबसे बड़ा माना गया है। माता को जल देने के लिए अपने (गोत्र का नाम लें) गोत्रे अस्मन्माता (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें।