प्रेरक प्रसंग: अपना कर्तव्य समझकर करें हर कार्य

Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Mar, 2018 06:20 PM

do work every with responsibility

प्राचीन समय की बात है एक राजा था। उसे राजा बने लगभग दस साल हो चुके थे। पहले कुछ साल तो उसे राज्य संभालने में कोई परेशानी नहीं आई। फिर एक बार अकाल पड़ा। उस साल लगान न के बराबर आया। राजा को यही चिंता लगी रहती कि खर्चा कैसे घटाया जाए ताकि काम चल सके।

प्राचीन समय की बात है एक राजा था। उसे राजा बने लगभग दस साल हो चुके थे। पहले कुछ साल तो उसे राज्य संभालने में कोई परेशानी नहीं आई। फिर एक बार अकाल पड़ा। उस साल लगान न के बराबर आया। राजा को यही चिंता लगी रहती कि खर्चा कैसे घटाया जाए ताकि काम चल सके। उसके बाद यही आशंका रहने लगी कि कहीं इस बार भी अकाल न पड़ जाए। उसे पड़ोसी राजाओं का भी डर रहने लगा कि कहीं हमला न कर दें। एक बार उसने कुछ मंत्रियों को उसके खिलाफ षडयंत्र रचते भी पकड़ा था। राजा को चिंता के कारण नींद नहीं आती। भूख भी कम लगती। शाही मेज पर सैकड़ों पकवान परोसे जाते, पर वह दो-तीन कौर से अधिक न खा पाता। राजा अपने शाही बाग के माली को देखता था। जो बड़े स्वाद से प्याज व चटनी के साथ सात-आठ मोटी-मोटी रोटियां खा जाता था।

 

रात को लेटते ही गहरी नींद सो जाता था। सुबह कई बार जगाने पर ही उठता। राजा को उससे जलन होती। एक दिन दरबार में राजा के गुरु आए। राजा ने अपनी सारी समस्या अपने गुरु के सामने रख दी। गुरु बोले वत्स यह सब राज-पाट की चिंता के कारण है इसे छोड़ दो या अपने बेटे को सौंप दो तुम्हारी नींद और भूख दोनों वापस आ जाएंगी।

 

राजा ने कहा नहीं गुरुदेव वह तो पांच साल का अबोध बालक है। इस पर गुरु ने कहा ठीक है फिर इस चिंता को मुझे सौंप दो। राजा को गुरु का सुझाव ठीक लगा। उसने उसी समय अपना राज्य गुरु को सौंप दिया। गुरु ने पूछा अब तुम क्या करोगे। राजा ने कहा कि मैं व्यापार करूंगा। गुरु ने कहा राजा अब यह राजकोष तो मेरा है। तुम व्यापार के लिए धन कहां से लाओगे। राजा ने सोचा और कहा तो मैं नौकरी कर लूंगा।

 

इस पर गुरु ने कहा यदि तुमको नौकरी ही करनी है तो मेरे यहां नौकरी कर लो। मैं तो ठहरा साधूु मैंं आश्रम में ही रहूंगा, लेकिन इस राज्य को चलाने के लिए मुझे एक नौकर चाहिए। तुम पहले की तरह ही महल में रहोगे। गद्दी पर बैठोगे और शासन चलाओगे, यही तुम्हारी नौकरी होगी। राजा ने स्वीकार कर लिया और वह अपने काम को नौकरी की तरह करने लगा। फर्क कुछ नहीं था काम वही था, लेकिन अब वह जिम्मेदारियों और चिंता से लदा नहीं था।

 

कुछ महीनों बाद उसके गुरु आए। उन्होंने राजा से पूछा कहो तुम्हारी भूख और नींद का क्या हाल है। राजा ने कहा- मालिक अब खूब भूख लगती है और आराम से सोता हूं। गुरु ने समझाया देखें सब पहले जैसेा ही है, लेकिन पहले तुमने जिस काम को बोझ की गठरी समझ रखा था। अब सिर्फ उसे अपना कर्तव्य समझ कर रहे हो। हमें अपना जीवन कर्तव्य करने के लिए मिला है। किसी चीज को जागीर समझकर अपने ऊपर बोझ लादने के लिए नही।

 

सीख: काम कोई भी हो चिंता उसे और ज्यादा कठिन बना देती है।
जो भी काम करें उसे अपना कर्तव्य समझकर ही करें। ये नहीं भूलना चाहिए कि हम न कुछ लेकर आए थे और न कुछ लेकर जाएंगे। 

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