Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Apr, 2022 12:02 PM
एक गरीब परिवार में जन्म लेकर आजाद भारत के पहले उपराष्ट्रपति और उसके बाद राष्ट्रपति के गरिमामयी पद को शुशोभित करना केवल कड़ी मेहनत और देश के प्रति समर्पण से ही हो सकता है। डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म
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Dr Sarvepalli Radhakrishnan: एक गरीब परिवार में जन्म लेकर आजाद भारत के पहले उपराष्ट्रपति और उसके बाद राष्ट्रपति के गरिमामयी पद को शुशोभित करना केवल कड़ी मेहनत और देश के प्रति समर्पण से ही हो सकता है। डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर, 1888 को चेन्नई के उत्तर-पश्चिम में स्थित तत्कालीन मद्रास प्रैसीडैंसी के चित्तूर जिले के एक छोटे से कस्बे तिरुताणी के एक निर्धन किन्तु विद्वान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरासमियाह और माता का नाम सीताम्मा था। उनके पिता राजस्व विभाग में काम करते थे जिन पर बहुत बड़े परिवार के भरण-पोषण का दायित्व था।
दर्शनशास्त्र में एम.ए. करने के पश्चात् 1918 में डा.राधाकृष्णन मैसूर महाविद्यालय में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हुए। उन्होंने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया। सारे विश्व में उनके लेखों की प्रशंसा की गई। शास्त्रों के प्रति उनकी ज्ञान-पिपासा बढ़ी। शीघ्र ही उन्होंने वेदों और उपनिषदों का भी गहन अध्ययन कर लिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी और संस्कृत भाषा का भी रुचिपूर्वक अध्ययन किया।
वह समूचे विश्व को एक विद्यालय मानते थे। ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय में दिए अपने भाषण में उन्होंने कहा था, ‘‘मानव को एक होना चाहिए। मानव इतिहास का संपूर्ण लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति तभी सम्भव है जब देशों की नीतियों का आधार पूरे विश्व में शान्ति की स्थापना का प्रयत्न हो।’’
दर्शन जैसे गम्भीर विषय को भी वह अपनी शैली से सरल, रोचक और प्रिय बना देते थे इसलिए इनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप मे मनाते हैं।
वह अनेक विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर तथा चांसरल भी रहे। उनकी योग्यता को देखते हुए उन्हें संविधान निर्माण सभा का सदस्य बनाया गया था।
जब भारत को स्वतंत्रता मिली तो 1949 से 1952 तक वह रूस की राजधानी मास्को में भारत के राजदूत पद पर रहे। 1952 में सोवियत संघ से आने के बाद उन्हें उपराष्ट्रपति निर्वाचित किया गया।
1962 में वह देश के दूसरे राष्ट्रपति बने। सन् 1967 तक राष्ट्पति के रूप में उन्होंने देश की अमूल्य सेवा की। शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए 1954 में उन्हें देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया गया।
उन्हें अमरीकी सरकार द्वारा टैम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया जो धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए प्रदान किया जाता है।
इस पुरस्कार को ग्रहण करने वाले वह प्रथम गैर-ईसाई सम्प्रदाय के व्यक्ति थे। 17 अप्रैल, 1975 को सर्वपल्ली राधाकृष्णन का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया।