Durga Puja: 2030 तक दुर्गा पूजा का टर्नओवर मेगा कुंभ मेला के बराबर हो जाएगा, पढ़ें कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Oct, 2022 12:03 PM

durga puja

पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा को यूनेस्को की ओर से अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का दर्जा मिलने के बाद अबकी राज्य के इस सबसे बड़े त्योहार की चमक बढ़ गई है। दुर्गा पूजा महज एक धार्मिक उत्सव ही नहीं, बल्कि

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Durga Puja: कोलकाता (प्रभाकर मणि तिवारी): पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा को यूनेस्को की ओर से अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का दर्जा मिलने के बाद अबकी राज्य के इस सबसे बड़े त्योहार की चमक बढ़ गई है। दुर्गा पूजा महज एक धार्मिक उत्सव ही नहीं, बल्कि सामाजिक मेलजोल बढ़ाने और सियासत चमकाने के साथ ही आर्थिक लिहाज से भी सबसे बड़ा मौका है। इसके अलावा यह एक साहित्यिक उत्सव भी है। तमाम मीडिया घराने इस मौके पर विशेषांक प्रकाशित करते हैं, जिनकी लाखों प्रतियां हाथों हाथ बिक जाती हैं। यूनेस्को ने बीते साल कोलकाता की दुर्गा पूजा को यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया था। राज्य में छोटी-बड़ी करीब तीस हजार पूजा आयोजित की जाती हैं। इनमें से तीन हजार से कुछ ज्यादा तो कोलकाता और आसपास के इलाकों में ही हैं। पहले दुर्गा पूजा षष्ठी से लेकर नवमी यानी चार दिनों तक ही मनाई जाती थी, लेकिन अब यह दस दिनों तक चलती है। 
पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा आयोजित करने की शुरुआत को लेकर कई कहानियां हैं। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का आयोजन 1757 के प्लासी के युद्ध के बाद शुरू हुआ। कहा जाता है कि प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों की जीत पर भगवान को धन्यवाद देने के लिए पहली बार दुर्गा पूजा का आयोजन हुआ था। प्लासी के युद्ध में बंगाल के शासक नवाब सिराजुद्दौला की हार हुई थी।

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युद्ध में जीत के बाद रॉबर्ट क्लाइव ईश्वर को धन्यवाद देना चाहता था, लेकिन युद्ध के दौरान नवाब सिराजुद्दौला ने इलाके के सारे चर्च को नेस्तानाबूद कर दिया था। उस वक्त अंग्रेजों के हिमायती राजा नव कृणदेव सामने आए। उन्होंने रॉबर्ट क्लाइव के सामने भव्य दुर्गा पूजा आयोजित करने का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव पर रॉबर्ट क्लाइव भी तैयार हो गया। उसी वर्ष पहली बार कोलकाता में भव्य दुर्गा पूजा का आयोजन हुआ। 1757 के दुर्गा पूजा आयोजन को देखकर बड़े अमीर जमींदार भी आश्चर्यचकित रह गए।

पहली बार दुर्गा पूजा के आयोजन को लेकर कुछ अन्य कहानियां भी हैं। कहा जाता है कि पहली बार नौवीं सदी में बंगाल के एक युवक ने इसकी शुरुआत की थी। बंगाल के रघुनंदन भट्टाचार्य नाम के एक विद्वान के पहली बार दुर्गा पूजा आयोजित करने का जिक्र भी मिलता है। एक दूसरी कहानी के मुताबिक बंगाल में पहली बार दुर्गा पूजा का आयोजन कुल्लूक भट्ट नाम के पंडित के निर्देशन में ताहिरपुर के एक जमींदार नारायण ने करवाया था। यह समारोह पूरी तरह से पारिवारिक था। कहा जाता है कि बंगाल में पास और सेन वंश के लोगों ने पूजा को काफी बढ़ावा दिया।

पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा की अर्थव्यवस्था 32,377 करोड़ रुपए की है। इसमें खुदरा क्षेत्र की हिस्सेदारी 27,634 करोड़ रुपए की है। दुर्गा पूजा में मूर्ति निर्माण, रोशनी व सजावट, प्रायोजन, विज्ञापन जैसे करीब 10 उद्योग खास तौर पर सक्रिय रहते हैं। राज्य के पर्यटन मंत्रालय के निर्देश पर ब्रिटिश काउंसिल की ओर से किए गए शोध से यह आंकड़ा सामने आया है। जानकारों के मुताबिक, कोलकाता पूजा के दौरान कॉर्पोरेट घराने 800 से लेकर 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा तक खर्च करते हैं। इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स पहले ही अनुमान जता चुका है कि 2030 तक दुर्गा पूजा का टर्नओवर मेगा कुंभ मेला के बराबर हो जाएगा जो करीब एक लाख करोड़ रुपए है।

PunjabKesari kundli

 

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