रोजाना घर में शंख बजाएं, हरि कृपा के साथ ढेरों लाभ कमाएं

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Apr, 2019 09:51 AM

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गौरक्ष संहिता, विश्वामित्र संहिता, पुलस्त्य संहिता आदि ग्रंथों में दक्षिणावर्ती शंख की महिमा बताई गई है। इस शंख को दरिद्रतानाशक, आयुवर्धक, समृद्धि देने वाला कहा गया है। दक्षिणावर्ती शंख जिसके घर में रहता है, वहां लक्ष्मी स्वयं निवास करती हैं।

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गौरक्ष संहिता, विश्वामित्र संहिता, पुलस्त्य संहिता आदि ग्रंथों में दक्षिणावर्ती शंख की महिमा बताई गई है। इस शंख को दरिद्रतानाशक, आयुवर्धक, समृद्धि देने वाला कहा गया है। दक्षिणावर्ती शंख जिसके घर में रहता है, वहां लक्ष्मी स्वयं निवास करती हैं। जो व्यक्ति दक्षिणावर्ती शंख की चंदन और देसी कपूर से पूजा करता है वह सौभाग्यशाली बन जाता है। जो व्यक्ति प्राण-प्रतिष्ठा युक्त दक्षिणावर्ती शंख अपने घर में स्थापित करता है निर्धतना उससे कोसों दूर भाग जाती है और भाग्य में वृद्धि होती है।
इस शंख की महिमा और गुणों के संदर्भ में ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है-

PunjabKesari‘शंख चंद्र और सूर्य के समान है, इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा तथा अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है। तीनों लोकों में जितने भी तीर्थ हैं, विष्णु आज्ञा से शंख में निवास करते हैं। शिव के दर्शन मात्र से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं।’

हमारे ऋषि-मुनि दूरदृष्टा के साथ-साथ तत्वदृष्टा भी थे। उन्होंने इस शंख के तत्व की अद्भुत शक्ति को पहचान कर ही घर में स्थापित कर पूजा और दर्शन करने के निर्देश दिए हैं।

‘अकाले मरणं नास्ति’ अर्थात शंख के प्रभाव से अकाल मृत्यु नहीं होती है। दिन के दूसरे पहर में शंख की पूजा करने से ‘धन वृद्धि’ होती है। शंख की चतुर्थ पहर पूजा करने से संतान प्राप्ति होती है। चैतन्य और प्राण-प्रतिष्ठायुक्त शंख जहां रहता है, दरिद्रता समाप्त हो जाती है। इसके प्रभाव से व्यक्ति के मान-सम्मान में वृद्धि होती है। इसके दर्शन मात्र से ही अभिशाप और बुरे ग्रहों के प्रभाव समाप्त हो जाते हैं। शाकिनी, भूत, बेताल, पिशाच और ब्रह्मराक्षस दूर भाग जाते हैं।

PunjabKesariशंख के भीतर चांदी का सिक्का अथवा अक्षत अवश्य रखें। फूल अर्पित करें तथा मिश्री का भोग लगाएं। कमलगट्टे या स्फटिक की माला से नित्य मंत्र जप करें।

शंख जो चैतन्य हो, घर के पूजा स्थल पर चावल की कटोरी के ऊपर इस प्रकार स्थापित करें कि शंख का पूंछ वाला भाग साधक की ओर न रहे। नित्य शुद्ध केसर का टीका लगाएं तथा धूप-दीप अर्पित करें। निम्र मंत्र का जाप करें-
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं दक्षिणमुखाय. शंखनिधये समुद्रप्रभाव नम:।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीधर करस्थाय पयोनिधि जाताय श्री दक्षिणावर्त शंखाय ह्रीं श्रीं क्लीं श्री कराय पूज्याय नम:।।’

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