Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Apr, 2019 01:19 PM
बच्चों को इस दिन ‘ईस्टर एग्स’ यानी अंडों को सजाने तथा उससे जुड़ी परम्पराएं विशेष रूप से आकर्षित करती हैं। ‘ईस्टर’ में अंडे का खास महत्व है क्योंकि जिस तरह से चिड़िया सबसे पहले अपने घोंसले में अंडा देती है और
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बच्चों को इस दिन ‘ईस्टर एग्स’ यानी अंडों को सजाने तथा उससे जुड़ी परम्पराएं विशेष रूप से आकर्षित करती हैं। ‘ईस्टर’ में अंडे का खास महत्व है क्योंकि जिस तरह से चिड़िया सबसे पहले अपने घोंसले में अंडा देती है और उसके बाद उसमें से चूजा निकलता है ठीक उसी तरह अंडे को एक शुभ प्रतीक माना जाता है और ‘ईस्टर’ में खास तरीके से इसका इस्तेमाल किया जाता है। कहीं अंडों पर पेंटिंग करके तो कहीं दूसरे रूप में सजाकर इसे गिफ्ट के रूप में एक-दूसरे को दिया भी जाता है। इसे एक शुभ संकेत माना जाता है जो लोगों को अच्छा जीवन जीने के लिए नई उमंग से भरने का संदेश देता है।
‘ईस्टर बनी’
इसके सबसे प्रमुख प्रतीक ‘ईस्टर बनी’ (खरगोश) को कथित रूप से अमेरिका में बसे जर्मन प्रवासियों ने लोकप्रिय किया था।
उनकी मान्यता थी कि लम्बे कानों और छोटी पूंछ वाले खरगोश ‘ईस्टर’ वाले दिन अच्छे बच्चों को सजाए हुए सुंदर अंडे उपहार में देते हैं। वास्तव में खरगोश हमेशा से नवजन्म तथा नए जीवन के प्रतीक रहे हैं।
कुछ स्रोतों के अनुसार ‘ईस्टर बनी’ की परम्परा पहली बार 1700 के दशक में जर्मन प्रवासियों के साथ अमेरिका पहुंची। पैन्सिलवेनिया में बसे इन लोगों ने ‘ओस्टरहेस’ या ‘ऑस्चर हॉस’ नामक रंगीन अंडे देने वाले खरगोश की अपनी परम्परा को जारी रखा। इन परिवारों के बच्चे घोंसले बनाते थे ताकि यह काल्पनिक जीव वहां रंगीन अंडे दे सके और जल्द ही यह परम्परा पूरे अमेरिका में लोकप्रिय होने लगी।
वक्त के साथ ईस्टर पर बच्चों को रंगीन अंडों के अलावा चॉकलेट तथा अन्य प्रकार की कैंडी व अन्य उपहार देने की परम्परा भी शुरू हो गई और सजाई हुई टोकरियों ने घोंसले का स्थान ले दिया।