Edited By Jyoti,Updated: 30 Jun, 2021 03:05 PM
द्वापर युग में हुए 18 दिन के महाभारत युद्ध से जुड़े जितने प्रचलित पात्र हैं, उतने ही प्रचलित हैैं इनसे संबंधित कथाएं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं महाभारत काल की एक ऐसा कथा के बारे में जो गुरु द्रोणाचार्य
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द्वापर युग में हुए 18 दिन के महाभारत युद्ध से जुड़े जितने प्रचलित पात्र हैं, उतने ही प्रचलित हैैं इनसे संबंधित कथाएं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं महाभारत काल की एक ऐसा कथा के बारे में जो गुरु द्रोणाचार्य और एकलव्य से संबंधित है। कथाओं के अनुसार एकलव्य द्रोणाचार्य का शिष्य था जिसकी गुरु दक्षिणा के किस्से काफी मशहूर है। परंतु क्या आप जानते हैं इससे जुड़ा एक ऐसा भी प्रसंग है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। जी हां, इसी शिष्य से जुड़ी एक ऐसी कथा है जिसके अनुसार इसी शिष्य ने गुरु से इस धोखे का बदला लेने के लिए दोबारा जन्म लिया था। इसीलिए श्री कृष्ण को उन्हें मारना पड़ा। आइए जानते हैं इस पूरे प्रसंग के बारे में-
महाभारत के अनुसारके अनुसार किशोरावस्था में एकलव्य धनुर्विद्या सीखने गुरु द्रोण के पास जाने लगे लेकिन उनकी जाति के कारण द्रोण उसका तिरस्कार करके हमेशा अपने आश्रम से उसे निकाल देते। एकलव्य द्रोण की मूर्ति बनाकर धनुर्विद्या सीखने लगे। जब द्रोणाचार्य तो पता चला कि एकलव्य उनके प्रिय शिष्य अर्जुन की तरह ही धनुर्विद्या में निपुण हो गया है और उस को हरा सकता है। तो उन्होंने दक्षिणा में उससे दाएं हाथ का अंगूठा मांग लिया ताकि एकलव्य कभी धनुष न चला सके।
कर्तव्य परायण एकलव्य ने एक अच्छे शिष्य होने के नाते अपना अंगूठा समर्पित कर दिया। पौराणिक कथाओं के अनुसार एकलव्य की मृत्यु श्री कृष्ण के हाथों रुक्मणी स्वयंवर के दौरान हुई थी। इस दौरान वे अपने पिता की रक्षा करते हुए मारे गए थे। परंतु तब उन्हें श्रीकृष्ण ने उन्हें द्रोण से बदला लेने के लिए फिर जन्म लेने का वरदान दिया जिसके बाद एकलव्य धृष्टाधुम्न के रूप में द्रुपद नरेश के घर जन्मे। द्रोपदी का भाई होने के नाते इन्हें द्रोपदा भी कहा जाता है।
कथाओं के अनुसार महाभारत युद्ध में धृष्टद्यूमन पांडवों की ओर से लड़े थे। जब भीष्म पितामह अर्जुन के हाथों घायल होकर शैय्या पर आ गए तब द्रोण कौरवों के सेनापति बने। इस दौरान युधिष्ठिर से अश्वथामा की मौत की खबर सुनकर द्रवित हो गए और धनुष बाण रख दिया। इसी समय पूर्व काल के एकलव्य यानी धृष्टाधुम्न ने तलवार से उनका शीश काट दिया। इस तरह एकलव्य ने एक ही काल में दूसरी बार जन्म देकर अपने गुरु के धोखे का बदला लिया।