Edited By Jyoti,Updated: 03 Sep, 2019 05:58 PM
इस संसार में जो भी मनुष्य जन्म लेगा वह सर्वप्रथम पांच कार्यों का कर्जदार हो जाता है। जब तक ये पांच ऋण वह चुका नहीं देता तब तक जन्म-मरण के बंधन में बंधा रहता है। इसलिए शीघ्र ही अपने इन पांच ऋणों से मुक्ति ले लेनी चाहिए।
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इस संसार में जो भी मनुष्य जन्म लेगा वह सर्वप्रथम पांच कार्यों का कर्जदार हो जाता है। जब तक ये पांच ऋण वह चुका नहीं देता तब तक जन्म-मरण के बंधन में बंधा रहता है। इसलिए शीघ्र ही अपने इन पांच ऋणों से मुक्ति ले लेनी चाहिए।
1. माता का ऋण : सर्वप्रथम माता का ऋण आता है। हम नौ माह तक अपनी मां के गर्भ में रहते हैं, उसको नौ माह तक प्रत्येक क्षण पीड़ा देते हैं और नौ माह के पश्चात जब हमारी जननी हमें जन्म देती है उस समय उसको भयंकर, असह्य पीड़ा होती है। जन्म लेने के पश्चात भी माता अपने बच्चे का लालन-पालन-पोषण करती है, कई वर्षों तक वह स्वयं दुख सहन कर अपने बच्चे को आंचल की छाया देती है। इसलिए माता का ऋण सबसे बड़ा ऋण है। इस ऋण को उतारने के लिए हमारा पूर्ण जीवन भी कम है फिर भी माता का ऋण चुकाने के लिए कन्या दान करना चाहिए। अपनी बेटी का कन्यादान तो सभी करते हैं किन्तु यह ऋण तभी उतरेगा जब किसी अन्य कन्या का कन्यादान किया जाए।
2. पिता का ऋण : पिता महान होता है। पिता का अपने बच्चे के प्रति सुरक्षा, सहायता और जिम्मेदारी का दायित्व होता है। पिता से ही जन्म होता है। पिता सिर्फ जैविक ही नहीं बल्कि पालनहार होता है, इसलिए पिता का ऋण चुकाने के लिए संतान उत्पत्ति करनी चाहिए।
3. गुरु का ऋण : गुरु वह होता है जो ज्ञान दे। एक गुरु चाहे उसका कोई भी रूप हो, जिस किसी से भी ज्ञान प्रदान किया हो, वह गुरु होता है इसलिए मनुष्य गुरु का ऋणी होता है। गुरु का ऋण चुकाने के लिए हमें जो भी ज्ञान हो उस ज्ञान से लोगों को शिक्षित करना होगा तभी गुरु का ऋण उतरेगा।
4. धरती का ऋण : धरती माता होती है, क्योंकि सभी प्राणी धरती पर ही चलते हैं और धरती से ही चलना सीखते हैं। यह धरती केवल मनुष्य की ही नहीं है अपितु समस्त करोड़ों प्रजातियों जीव-पशुओं की भी है। सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एकमात्र धरती ही वह स्थान है जहां जीवन का अस्तित्व है इसलिए धरती का ऋण चुकाने के लिए पेड़ लगाने चाहिएं अथवा कृषि कार्य करना चाहिए।
5. धर्म का ऋण : धर्म अर्थात जिसने धरण किया हुआ है इस समस्त जगत को। जो परमेश्वर है वही धर्म है। धर्म केवल मनुष्य के लिए ही नहीं है अपितु समस्त जीव-जन्तु पशुओं के लिए भी धर्म है। पानी का धर्म है बहना, अग्नि का धर्म है प्रकाश करना, अपने संपर्क में आने वाली वस्तुओं को जलाना, वायु का धर्म है चलना समस्त जीवों को जीवनदान देना, आकाश का धर्म है सब कुछ अपने अन्दर समा लेना, बादलों का धर्म है बरसना। इसलिए मनुष्य को धर्म का ऋण उतारने के लिए धार्मिक कार्य करने चाहिएं। धर्म की रक्षा करनी चाहिए और धर्म का प्रचार तथा अपने प्रभु का गुणगान करना चाहिए।