दिन में भी श्मशान के करीब से निकलना पड़ सकता है भारी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Jan, 2018 12:46 PM

evryone should avoid visit graveyard on this time

जितनी सचाई जन्म में होती है उतनी ही सचाई मृत्यु में भी है। परंतु लोग अक्सर मृत्यु के नाम से डर जाते हैं। श्मशान घाट का नाम सुनते ही लोग डर जाते हैं। इतना ही नही दिन में भी श्मशान घाट के पास से गुजरते हुए डरते हैं

जितनी सचाई जन्म में होती है उतनी ही सचाई मृत्यु में भी है। परंतु लोग अक्सर मृत्यु के नाम से डर जाते हैं। श्मशान घाट का नाम सुनते ही लोग डर जाते हैं। इतना ही नही दिन में भी श्मशान घाट के पास से गुजरते हुए डरते हैं और शायद आप भी हो सकता है कि आपके इस डर का कई लोगों ने मजाक भी बनाया होगा। लेकिन लोगों को यह पता होना चाहिए कि ये डर मजाक का नही सच्चाई का तथ्य है। तो आईए आपको बताए न केवल रात में बल्कि दिन में भी श्मशान के समीप से निकलना कितना भारी पड़ सकता है। 

अस्थि विसर्जन- मान्यता अनुसार गंगा एेसी नदी है, जिसके जल को पीने या मात्र नहाने से ही व्यक्ति के समस्त पाप धुल जाते हैं। यही कारण है कि दाह संस्कार के बाद अस्थियों की राख को गंगा में प्रवाहित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मनुष्य की अस्थियां वर्षों तक गंगा नदी में ही रहती हैं। गंगा नदी धीरे-धीरे उन अस्थियों के माध्यम से इंसान के पाप को खत्म करती है और उससे जुड़ी आत्मा के लिए नया मार्ग खोलती है। 

 

हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार प्राय: नदी के किनारे ही किए जाते हैं। इस स्थान को श्मशान घाट कहा जाता है जहां शवों को लाकर उनका अंतिम संस्कार किया जाता है। 
श्मशान घाट पर आत्माओं, भूत-प्रेत आदि का निवास भी माना जाता है। यहां अघोरी भी होते हैं इसलिए जैसे ही चंद्रमा आकाश में नजर आने लगे उस समय से लेकर सूर्योदय तक जीवित मनुष्यों को श्मशान घाट या उसके करीब से बिल्कुल भी नहीं गुजरना चाहिए।

 

श्मशान अधिपति- भगवान शिव और मां काली को श्मशान घाट का भगवान कहा गया है. भगवान शिव जहां भस्म से पूरी तरह ढके होते हैं और ध्यानमग्न होते हैं, वहीं मां काली बुरी आत्माओं का पीछा करती हैं।


श्मशान की देखरेख करते हैं भगवान शिव- ऐसी मान्यता है कि शरीर के अंतिम संस्कार के बाद भगवान शिव मृत को अपने अंदर समाहित कर लेते हैं। इसलिए किसी मानव को अपनी उपस्थिति से इस प्रक्रिया में बाधा नहीं पहुंचानी चाहिए नहीं तो उन्हें मां काली के प्रकोप का सामना करना पड़ सकता है।


हिंदू शास्त्रों के अनुसार, दिन के समय भी किसी भी इंसान को श्माशन घाट में नहीं घूमना चाहिए। इस समय भी बुरी आत्माएं सक्रिय हो जाती है और मानव इन बुरी आत्माओं या नकारात्मक शक्तियों से लड़ने में सक्षम नहीं होता है।


हिन्दू शास्त्रों के अनुसार रात को नकारात्मक शक्तियां अधिक प्रभावी होती हैं। ये नकारात्मक शक्तियां मानसिक रूप से कमजोर किसी भी व्यक्ति को तुरंत अपने प्रभाव में ले लेती हैं। यदि कोई व्यक्ति भावनात्मक रूप से कमजोर हो और नकारात्मक सोच से घिरा हुआ हो तो ये संभावना और भी बढ़ जाती है। प्रायः जब कोई व्यक्ति इन नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव में आता है तो उसका खुद पर काबू नहीं रहता। वह उनके वश में हो जाता है।


इसमें कोई संदेह नहीं है कि सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव सभी मनुष्य पर होता है। लेकिन कमजोर सोच के लोगों पर नकारत्मक शक्ति तुरंत हावी हो जाती है। इसलिए कहा गया है कि रात को किसी भी श्मशान में नहीं जाना चाहिए या उसके पास से नहीं गुजरना चाहिए।

 

हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार को लेकर बताए गए कुछ नियम 
किसी भी शव का जल्दबाजी में अंतिम संस्कार नहीं करें- अगर किसी व्यक्ति की दिन के समय में मृत्यु हो जाती है तो शव को 9 घंटे के भीतर अंतिम संस्कार कर दिया जाना चाहिए लेकिन अगर किसी की मृत्यु रात में हुई है तो फिर उसका अंतिम संस्कार 9 नाजीगई (1 नाजीगई-24 मिनट) में किया जाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि  यम अगर गलती से किसी आत्मा को लेते जाते हैं तो वे उसे वापस पहुंचाने की ताकत भी रखते हैं इसलिए अंतिम संस्कार करने में बहुत जल्दबाजी करना उचित नहीं माना जाता है।

पत्नी गर्भवती है तो अंतिम संस्कार में शामिल न हों-अगर किसी पुरुष को पता है कि उसकी पत्नी गर्भवती है तो उसे उस दौरान अंतिम संस्कार के क्रियाकलापों से दूर रहना चाहिए। उसे श्मशान घाट भी नहीं जाना चाहिए।


अगर किसी की मौत दक्षिणायन, कृष्ण पक्ष, रात्रि में हुई हो तो इसे दोष माना जाता है। इसलिए शव को जलाने से पहले रिश्तेदारों को ब्राह्मणों को भोज, व्रत या दान-पुण्य करके इस दोष का निवारण किया जा सकता है।

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