Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 May, 2018 08:48 AM
सुकरात एक बार फिर शिष्यों के साथ बैठे कुछ चर्चा कर रहे थे। तभी वहां एक ज्योतिषी आया और कहने लगा, ‘मैं ज्ञानी हूं। चेहरा देखकर चरित्र बता सकता हूं। कोई मेरी इस विद्या को परखना चाहेगा?’
सुकरात एक बार फिर शिष्यों के साथ बैठे कुछ चर्चा कर रहे थे। तभी वहां एक ज्योतिषी आया और कहने लगा, ‘मैं ज्ञानी हूं। चेहरा देखकर चरित्र बता सकता हूं। कोई मेरी इस विद्या को परखना चाहेगा?’
सभी शिष्य सुकरात की तरफ देखने लगे। सुकरात ने उस ज्योतिषी से अपने बारे में बताने के लिए कहा। ज्योतिषी उन्हें ध्यान से देखने लगा। सुकरात बहुत बड़े ज्ञानी थे लेकिन देखने में बड़े सामान्य थे।
ज्योतिषी बोला, ‘तुम्हारे चेहरे की बनावट बताती है कि तुम सत्ता के विरोधी हो। तुम्हारे अंदर द्रोह की भावना प्रबल है। तुम्हारी आंखों के बीच पड़ी सिंकुडऩ तुम्हारे अत्यंत क्रोधी होने का प्रमाण देती है।’
ज्योतिषी ने अभी इतना ही कहा था कि वहां बैठे शिष्य उसको वहां से जाने के लिए कहने लगे। सुकरात ने उन्हें शांत करते हुए ज्योतिषी को अपनी बात पूरी करने को कहा।
ज्योतिषी बोला, ‘तुम्हारे बेडौल सिर और माथे से पता चलता है कि तुम एक लालची ज्योतिषी हो। तुम्हारी ठुड्डी की बनावट तुम्हारे सनकी होने की तरफ इशारा करती है।’
यह सुनकर शिष्य और भी क्रोधित हो गए पर सुकरात प्रसन्न। उन्होंने ज्योतिषी को ईनाम देकर विदा किया।
सुकरात के इस व्यवहार से आश्चर्य में पड़े शिष्यों ने उनसे पूछा, ‘आपने उस ज्योतिषी को ईनाम क्यों दिया? उसने जो कुछ भी कहा, वह सब गलत है।’
‘नहीं पुत्रो, ज्योतिषी ने सच कहा। उसके बताए सारे दोष मुझमें हैं। मुझमें लालच और क्रोध है। उसने जो कुछ भी कहा वह सच है, पर वह एक बहुत जरूरी बात बताना भूल गया। उसने सिर्फ बाहरी चीजें देखीं, पर मेरे अंदर के विवेक को नहीं आंक पाया जिसके बल पर मैं इन सारी बुराइयों को अपने वश में किए रहता हूं। यहीं वह चूक गया। वह बुद्धि के बल को नहीं समझ पाया!’
यह कहकर सुकरात ने अपनी बात पूर्ण की।