आस्था या अंधविश्वास: INDIA में हैं अज़ब-गज़ब परंपराएं

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 Jun, 2018 11:12 AM

भारत एक ऐसा देश है जहां विभिन्न समुदाय के लोग रहते हैं। उनकी मान्यताएं भी अजीबो-गरीब हैं, जिन पर विश्वास करना साधारण जन की बात नहीं है। आज चाहे हिंदुस्तान डिवेलपिंग कंट्री के रूप में ऊभर कर सामने आ रहा है,

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भारत एक ऐसा देश है जहां विभिन्न समुदाय के लोग रहते हैं। उनकी मान्यताएं भी अजीबो-गरीब हैं, जिन पर विश्वास करना साधारण जन की बात नहीं है। आज चाहे हिंदुस्तान डिवेलपिंग कंट्री के रूप में ऊभर कर सामने आ रहा है, फिर भी अंधविश्वास पर आंखे मूंद कर विश्वास किया जाता है। इस लेख में हम आपको अज़ब-गज़ब परंपराओं से रूबरू करवाएंगे, जो हमें अचरज में डालती हैं लेकिन हमारा मकसद किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना कदापि नहीं है।  

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छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में आदिवासी मुंडा समाज में ऐसी परंपरा का चलन है कि दुधमुंहे बच्चों के ऊपरी दांत पहले निकलने पर उसे ग्रहदोष लग जाता है और बच्चे की उम्र पांच वर्ष की होने से पहले ऐसे बच्चों की शादी कुत्ते से करवाई जाती है। इतना ही नहीं, यह शादी पूरे रीति-रिवाज से होती है।

बच्चों को तो दूल्हा-दुल्हन के रूप में सजाया ही जाता है, परंतु कुत्ते के बच्चे को भी तैयार किया जाता है। बड़े-बुजुर्ग बच्चों व कुत्तों को हल्दी लगाते हैं और सामान्य शादी की तरह ही मांग भरी जाती है। शादी में महिलाएं पारंपरिक गीत गाती है और नाचती है। शादी के बाद दूल्हा-दुल्हन को पैर धुलाकर गृह प्रवेश कराया जाता है। इसके बाद कुत्ते के बच्चे को खाना खिलाया जाता है। शादी का यह जश्न रातभर चलता है। 

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झारखंड राज्य के कई इलाकों में परंपरा के नाम पर एक लड़की की शादी एक कुत्ते से करवा दी जाती हैं। उनका मानना है की यह शादी उपाय के तौर पर होती है, जिससे बुरे समय को दूर किया जा सकता है। शादी में पूरा गांव इकठ्ठा होता है। नाच-गाना और रस्में निभाई जाती हैं। उसके बाद कुत्ते को बाकायदा विदा कराकर घर लेकर आते हैं।

हिमाचल प्रदेश के मणिकर्ण घाटी में स्थित पीणी गांव में सालों से लोग इस परंपरा को निभा रहें है। इस अनोखी परंपरा के कारण महिलाएं सावन महीने में पूरे 5 दिन निवस्त्र रहती है लेकिन इस परंपरा के दौरान वो मर्दों के सामने नहीं आती और न ही पुरूष उनके सामने आ सकते है। यहां तक की इस प्रथा के दौरान उन औरतों के पति भी उनसे दूर रहते है। पूर्वजों के समय से इस प्रथा को निभा रहें लोगों की मान्यता है कि ऐसा न करने से घर में कुछ अशुभ होता है।

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कुछ लोगों का मानना यह भी है कि कुछ सालों पहले यहां एक राक्षस सुन्दर कपड़े पहनने वाली औरतों को उठा रहा था, जिसका अंत इस गांव में लाहुआ घोंड देवताओं ने किया। गांव वालों का कहना है कि वह देवता आज भी आते है और बुराई का अंत करते है। इसलिए इन 5 दिनों तक लोग हंसना बंद करते हैं और महिलाएं खुद को सांसारिक दुनिया से अलग कर लेती हैं। हांलाकि अब नई पीढ़ी इस परंपरा को थोड़ा अलग तरीके से निभाती है। नई पीढ़ी के हिसाब से महिलाएं इन 5 दिनों में कपड़े नहीं बदलती हैं और काफी बारीक कपड़ें पहनती हैं।

बांग्लादेश के दक्षिण पूर्व माधोपुर जंगलों में रहने वाली मंडी जनजाति में मां और बेटी को एक ही मर्द से शादी करनी पड़ती है। इस जनजाति में जब किसी महिला के पति की मौत कम उम्र हो जाती है तो उसे अपने पति के खानदान में से ही एक कम उम्र के आदमी से शादी करनी पड़ती है। एक ही मंडप पर मां और बेटी की शादी नए पति के साथ करवा दी जाती है। कहा जाता है कि कम उम्र का पति नई पत्नी और उसकी बेटी का भी पति बनकर उनकी सुरक्षा करता है। 

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सम्पति के बंटवारे को रोकने के लिए भी इस परंपरा को निभाया जाता है। इस जाति में परिवार का मुखिया महिला होती है। वहीं, यहां छोटी उम्र में ही महिलाओं की शादी कर दी जाती है। समय बदलने के साथ अब यहां की लड़कियां इस परंपरा का विरोध कर रही हैं।

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