संसार भर में प्रशंसा पाने पर भी आपके पिता को दिखती हैं आप में कमियां

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Jul, 2020 10:54 AM

father son

एक प्रसिद्ध मूर्तकार अपने पुत्र को मूर्त बनाने की कला में दक्ष करना चाहता था। उसका पुत्र भी लगन और मेहनत से कुछ समय बाद बेहद खूबसूरत मूर्तियां बनाने लगा। उसकी आकर्षक मूर्तियों से लोग भी

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Father and son relationship: एक प्रसिद्ध मूर्तकार अपने पुत्र को मूर्त बनाने की कला में दक्ष करना चाहता था। उसका पुत्र भी लगन और मेहनत से कुछ समय बाद बेहद खूबसूरत मूर्तियां बनाने लगा। उसकी आकर्षक मूर्तियों से लोग भी प्रभावित होने लगे लेकिन उसका पिता उसकी बनाई मूर्तियों में कोई न कोई कमी बता देता था। उसने और कठिन अभ्यास से मूर्तियां बनानी जारी रखीं ताकि अपने पिता की प्रशंसा पा सके। शीघ्र ही उसकी कला में और निखार आया। फिर भी उसके पिता ने किसी भी मूर्ती के बारे में प्रशंसा नहीं की।

PunjabKesari father and son relationship

निराश युवक ने एक दिन अपनी बनाई एक आकर्षक मूर्त अपने एक कलाकार मित्र द्वारा अपने पिता के पास भिजवाई और अपने पिता की प्रतिक्रिया जानने के लिए स्वयं ओट में छिप गया। 

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पिता ने उस मूर्त को देखकर कला की भूरि-भूरि प्रशंसा की और बनाने वाले मूर्तकार को महान कलाकार भी घोषित किया। पिता के मुंह से प्रशंसा सुन छिपा पुत्र बाहर आया और गर्व से बोला, ‘‘पिता जी वह मूर्तकार मैं ही हूं। यह मूर्त मेरी ही बनाई हुई है। इसमें आपने कोई कमी नहीं निकाली। आखिर आज आपको मानना ही पड़ा कि मैं एक महान कलाकार हूं।’’

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पुत्र की बात पर पिता बोला, ‘‘बेटा एक बात हमेशा याद रखना कि अभिमान व्यक्ति की प्रगति के सारे दरवाजे बंद कर देता है। आज तक मैंने तुम्हारी प्रशंसा नहीं की। इसी से तुम अपनी कला में निखार लाते रहे। अगर आज यह नाटक तुमने अपनी प्रशंसा के लिए ही रचा है तो इससे तुम्हारी ही प्रगति में बाधा आएगी और अभिमान के कारण तुम आगे नहीं बढ़ पाओगे।’’

पिता की बातें सुन पुत्र को गलती का अहसास हुआ और पिता से क्षमा मांगकर अपनी कला को और अधिक निखारने का संकल्प लिया। 

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