Kundli Tv- सांवरे तक न पहुंचे गर्म हवा, भक्त बनाते हैं फूल बंगला

Edited By Jyoti,Updated: 01 Jul, 2018 04:39 PM

flower bungalow in mathura

मथुरा: भक्त और भगवान का रिश्ता भी क्या खूब है। कहां तो भगवान को सर्वशक्तिमान और सृष्टि का पालनहार मानकर भक्त अपनी हर समस्या के समाधान के लिए उनके दर पर दस्तक देता है और कहां श्याम सांवरे को गर्म हवा न लग जाए इसके लिए गर्मी का मौसम आते ही उनके लिए...

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मथुरा: भक्त और भगवान का रिश्ता भी क्या खूब है। कहां तो भगवान को सर्वशक्तिमान और सृष्टि का पालनहार मानकर भक्त अपनी हर समस्या के समाधान के लिए उनके दर पर दस्तक देता है और कहां श्याम सांवरे को गर्म हवा न लग जाए इसके लिए गर्मी का मौसम आते ही उनके लिए फूल बंगला बनवाता है। चैत्र बैसाख के मौसम में भगवान के भक्त अपने आराध्य को गर्म हवा के थपेड़ों से राहत दिलाने के लिए मंदिरों में हर दिन भिन्न-भिन्न प्रकार के देशी-विदेशी फूलों, कलियों व पत्तों से फूल बंगले सजाते हैं। भगवान के मंदिरों में फूल बंगला बनाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। बांकेबिहारी मंदिर के सेवायत आचार्य प्रहलाद वल्लभ गोस्वामी के अनुसार होली के बाद जैसे ही ग्रीष्म ऋतु परवान चढऩे लगती है, चैत्र शुक्ल एकादशी (जिसे कामदा एकादशी भी कहा जाता है) के दिन से सभी मंदिरों में ठाकुरजी को ठण्डक का अहसास कराने के लिए फूल बंगले सजने लगते हैं, जिससे सारा वातावरण अछ्वुत सुगंधियों से महक उठता है।    

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यह प्रक्रिया श्रावण मास की अमावस्या, यानि तब तक जारी रहती है जब तक कि गर्मी समाप्त होकर मौसम सुहाना न हो जाए। इस दौरान अक्षय तृतीया के दिन फूल बंगला नहीं बनाया जाता। दरअसल इस दिन प्रभु को गर्मी से बचाव के लिए विशेष रूप से ‘चंदन यात्रा’ कराई जाती है। उस दिन सब कुछ - यहां तक कि ठाकुर जी के संपूर्ण अंग-प्रत्यंग, वस्त्र इत्यादि को - चंदन के लेप से सराबोर कर दिया जाता है।      
 

बांकेबिहारी मंदिर में फूल बंगला बनाने की इस परम्परा के जनक स्वामी हरिदास माने जाते हैं जो ठाकुर जी को गर्मी से राहत दिलाने के लिए स्वयं जंगलों से फूल चुनकर लाते थे और फिर उन्हें कलात्मक तरीके से इस प्रकार लगाते थे कि सौन्दर्य के साथ साथ शीतलता देने वाला वातावरण बन जाए। दुनियाभर में विख्यात बांके बिहारी मन्दिर में फूल बंगला बनाने की परम्परा ने अपनी अलग पहचान बना ली है। ये फूल बंगले कला, संस्कृति, भक्ति और पर्यावरण के समन्वय के अछ्वुत नमूने हैं। इन बंगलों पर आने वाला व्यय ठाकुर बांके बिहारी के भक्त स्वयं उठाते हैं जो लाखों में होता है। मंदिर के प्रबंधक उमेश सारस्वत ने बताया, ‘ठाकुरजी की इस सेवा के लिए भक्त इतने लालायित रहते हैं कि इसके लिए साल भर पहले से ही अग्रिम बुकिंग करा लेते हैं।’  
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मंदिर के सेवायत विनय गोस्वामी ने बताया, ‘साधारण बंगलों में लगने वाले फूलों की आपूॢत मथुरा या वृन्दावन से ही हो जाती है किंतु बड़े एवं विशिष्ट प्रकार के बंगलों के लिए दिल्ली, अहमदाबाद, कोलकाता, बेंगलूर तक से फूल मंगाए जाते हैं।’   

अधिकतर बंगलों में रायबेल के फूलों तथा केले के तने का अन्दर का मुलायम छिलका इस्तेमाल किया जाता है। आसन में केले के कोमल तने पर जब रौशनी पड़ती है तो ऐसा लगता है जैसे चांदी के आभूषण लगा दिए गए हैं।   

फूल बंगले बनाने के लिए कई प्रकार के फ्रेम उपयोग में लाए जाते हैं। इनमें रायबेल, कनेर आदि की कोमल कलियों से तरह तरह की मनमोहन आकृतियां बनाई जाती हैं। फूल पोशाक में साड़ी, लहंगा, ओढऩी, पटुका जामा, पायजामा आदि काले कपड़े पर कलियों के माध्यम से बनाए जाते हैं।      
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धर्म, संस्कृति और कला का अनूठा संगम बन चुके इन फूल बंगलों को लगभग पांच दशक पहले छबीले महाराज ने वर्तमान स्वरूप प्रदान किया था। वे फूल बंगलों एवं श्रृंगार के अद्वितीय कलाकार थे और बंगले की सजावट को नया रूप देने, उसमें विभिन्न प्रकार के जाल बनाने की कला में बेहद प्रवीण थे। बाद में, बाबा कृष्णानन्द अवधूत, सेठ हरगुलाल बेरीवाला, प्रताप चन्द्र चाण्डक, ज्वाला प्रसाद मण्डासीवाला, अर्जुन दास, राधाकृष्ण गाडोदिया आदि ने बंगला परम्परा में चार चांद लगाए। वर्तमान में बांके बिहारी मन्दिर में बनने वाले फूल बंगले अन्य मंदिरों के लिए आदर्श बन चुके हैं। मन्दिर के मुख्य भाग को जहां फूलों के महल का रूप दे दिया जाता है तो वहीं मन्दिर की छत को फूलों और पत्तियों से कुंज का स्वरूप देने की कोशिश की जाती है। कई बार इस कुंज में पानी के झरने और फव्वारे भी चलाए जाते हैं।      


राधारमण मन्दिर में कुंज के रूप में फूल बंगला बनाने की परम्परा है। मंदिर के सेवायत आचार्य पद्मनाभ गोस्वामी के बताते हैं कि मंदिर में इस सेवा की शुरुआत गोपाल भट्ट गोस्वामी ने की थी। अक्षय तृतीया के अवसर पर ठाकुर की आरती केवल फूलों से होती है।   
 

राधा दामोदर मंदिर की सेवायत कृष्णा गोस्वामी के अनुसार, ठाकुर जी के चंदन लेपन की शुरुआत जीव गोस्वामी ने की थी। मदनमोहन मंदिर के अजय किशोर बताते हैं कि रासलीला के दौरान ठाकुर जी को तपिश लगने पर राधारानी ने उनसे शरीर में चंदन का लेप लगाने को कहा था। तभी से चंदन लेप प्रारम्भ हुआ।      

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इन दिनों मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन में प्रभु को ठण्डक पहुंचाने के लिए फूल बंगलों की धूम मची हुई है। यह भक्ति की पराकाष्ठा नहीं, तो और क्या है कि मां यशोदा को अपने मुंह में तीनों लोक दिखाने वाले और महाभारत के युद्ध में एक इशारे से सूरज को बादलों से ढांप देने वाले भगवान कृष्ण को गर्मी के प्रकोप से बचाने के लिए भोले भक्त उनके लिए कभी फूल बंगला बनाते हैं तो कभी उन्हें चंदन लेप लगाते हैं।
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