सही मायने में खुश रहना है तो FOLLOW करें ये सीख

Edited By Lata,Updated: 05 Sep, 2019 10:10 AM

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जब प्रख्यात शिक्षाविद् और समाज सुधारक अश्विन कुमार दत्त स्कूल में पढ़ते थे उन दिनों यह नियम था कि 16 वर्ष से कम उम्र के विद्यार्थी मैट्रिक की परीक्षा में नहीं बैठ सकते।

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जब प्रख्यात शिक्षाविद् और समाज सुधारक अश्विन कुमार दत्त स्कूल में पढ़ते थे उन दिनों यह नियम था कि 16 वर्ष से कम उम्र के विद्यार्थी मैट्रिक की परीक्षा में नहीं बैठ सकते। अश्विन कुमार 14 वर्ष में ही मैट्रिक में पहुंच गए थे। वह दुविधा में पड़ गए। वह परीक्षा तो देना चाहते थे, लेकिन समझ नहीं पा रहे थे कि उम्र का अवरोध कैसे दूर किया जाए। जब उन्होंने देखा कि कम उम्र के कई विद्यार्थी अपनी उम्र 16 वर्ष लिखवा कर परीक्षा में बैठ रहे हैं तो थोड़ी राहत मिली। उन्होंने भी ऐसा ही करने का निश्चय किया।

उन्होंने आवेदन में अपनी उम्र 16 वर्ष लिखी। वह मैट्रिक पास भी हो गए। उस समय उन्हें ऐसा नहीं लगा कि उन्होंने कुछ गलत किया है, लेकिन एक साल होते-होते उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया। उन्होंने अपने कॉलेज के प्राचार्य से बात कर अपनी गलती को सुधारने की इच्छा जताई। प्राचार्य ने उनकी सत्यनिष्ठा की बड़ी प्रशंसा की, किंतु इसे सुधारने में अपनी असमर्थता जाहिर कर दी। 
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अश्विन कुमार का मन नहीं माना, तो वह कलकत्ता विश्वविद्यालय के पंजीकरण अधिकारी से मिले मगर वहां से भी उन्हें यही जवाब मिला कि अब कुछ नहीं किया जा सकता।

मगर अश्विन कुमार को हर हाल में प्रायश्चित करना था। आखिरकार उन्हें एक उपाय सूझा। चूंकि अपनी उम्र उन्होंने 2 वर्ष बढ़ाकर बताई थी, इसलिए प्रायश्चित स्वरूप 2 वर्ष पढ़ाई बंद रखने का फैसला किया। इस फैसले पर अमल करने के बाद उन्होंने सुकून महसूस किया। बाद में उन्होंने इस बात को दोहराया कि सत्य का आचरण कर व्यक्ति नैतिक रूप से मजबूत होता है। गलत तरीके से उपलब्धियां प्राप्त होने पर भी आत्मबल मजबूत नहीं होता। ऐसे में व्यक्ति सही मायने में खुश नहीं रह सकता।

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