श्री राम से लेकर भगवान महावीर तक ने किया ये बड़ा बलिदान

Edited By Jyoti,Updated: 11 Dec, 2019 01:55 PM

from shri ram to lord mahavira they made this big sacrifice in their lives

कामयाब होने की अपनी लालसा को पूरा करने के लिए हर व्यक्ति मेहनत करता रहता है। परंतु वो कहते हैं न जैसे जैसे हम अपने जीवन में आगे बढ़ते जाते हैं तो बहुत कुछ पीछे छूट जाता है।

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कामयाब होने की अपनी लालसा को पूरा करने के लिए हर व्यक्ति मेहनत करता रहता है। परंतु वो कहते हैं न जैसे जैसे हम अपने जीवन में आगे बढ़ते जाते हैं तो बहुत कुछ पीछे छूट जाता है। आप में से कुछ लोग इस उपरोक्त लिखी पंक्ति को गलत ठहराना शुरू कर दिया होगा कि ऐसा नहीं होता है। ऐसे भी लोग होते हैं जो जीवन में हर चीज़ को अपने साथ लेकर आगे बढ़ते हैं। तो आपको बता दें ऐसा नहीं है प्रत्येक व्यक्ति को कामयाब होने के लिए अपने जीवन में बहुत कुछ पीछे छोड़ना पड़ता है। फिर चाहे इंसान कितनी भी कोशिश क्यों न कर लें आप उसे अपने हाथ से छूट जाने से रोक नहीं पाते।
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और इस बात का प्रमाण है हिंदू धर्म के देवी-देवता जिन्होंने अपनी लीलाओं द्वारा ये बताया कि जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के लए कुछ न कुछ छूटता ही छूटता है। उदाहरण के तौर पर बता दें श्री राम ने अपने वनवास काल के दौरान अपने घर-परिवार से लेकर राजपाट तक को छोड़ दिया था। तो द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के अवतार में पहले अपने जन्म देने वाले माता-पिता देवकी-वासुदेव को छोड़ा, फिर अपने पालन-पोषण करने वाले माता-पिता, नंद-यशोदा को छोड़ा फिर अपनी राधा-रानी, भाई बलराम और अपने परम मित्र सुदामा को छोड़ा। तो वहीं बुद्ध और महावीर जी ने भी साधना के पथ पर आगे बढ़ने के लिए बहुत कुछ पीछे छोड़ा। मगर बता दें, एक भी ऐसा आख्यान नहीं है कि इनमें से कोई भी अवसाद में गए हों। वे आनंद के साथ अंदर और बाहर की दुनिया की दूरी को तय करते रहे। दरअसल यह छूटना, यह त्याग है और त्याग निश्चित तौर पर हमेशा सुपरिणाम लाता है।

राम हो या कृष्ण, बुद्ध हो या महावीर, ये हमेशा जाग्रत अवस्था में रहते थे जो कल्याण और निर्माण की अवस्था होती है। अगर प्रत्येक व्यक्ति भी मनुष्यता की परवाह करते हुए आगे बढ़ते हैं तो समझिए कि हम जागे हुए हैं। यह जागना एक तरह की आत्म-दृष्टि है। इसके आते ही न केवल मन के विकार नष्ट होते हैं बल्कि समस्त दुखों का भी अंत होता है। ये भी कहा जाता है कि ये परमात्मा तक पहुंचने का भी एक सुगम मार्ग है।
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भगवान महावीर ने एक पंक्ति द्वारा समझाते हैं-
‘सुत्तेसु यावि पडिबुद्ध जीवी, न वीससे पंडिए आसुपन्ने।’
अर्थात- सारा संसार मोह-निद्रा में सो रहा है। सौभाग्य से तुम जाग गए हो। तुम्हें आत्म-दृष्टि मिली है, परंतु सारे संसार को सोया हुआ देखकर तुम वापस सो मत जाना।’

अगर भगवान महावीर द्वारा इन संकेतों को समझा जा सक तो यकीन मानिए जीवन का हर अनुभव हमें सिद्धि की तरफ ले जाने में मदद करेगा। हम यानि व्यक्ति अपने लिए या संसार के लिए जो कुछ अच्छा पाना चाहते है, उसमें कामयाबी तो ज़रूर मिलेगी। बस इसके लिए आपको अपने अनुभवों को सहलाने, संभालने और सुपरिणामों को समझने के गुण आना चाहिए। इस बात को समझने की अधिक आवश्यकता है कि जो व्यक्ति अपने विचार चारदीवारी में बांध लेता है वह कभी पनप नहीं सकता। जैसे बंधा पानी सागर तक नहीं पहुंच सकता, वैसे ही बंधा हुआ विचार सत्य को कभी नहीं छू सकता। पानी चलता रहे तो सागर बन जाता है। ठीक उसी तरह विचार गतिशील रहे तो सत्य बन जाता है। इसलिए कहा जाता है कि मन में जिज्ञासा उभरे,उ लिए ज़रूरी है कि हम कहीं भी अपने आप को बांधें नहीं। तब हम खुद ही महसूस करेंगे कि कामयाबी पाने की बेचैनी कैसे आत्म-दृष्टि में विलीन हो रही है। इसस ये सीख मिलती है कि पीछे जो कुछ छूट रहा है, वह आपसे मिलने के लिए बेचैन है, परंतु हर हाल में जागते रहना ज़रूरी है।
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