Edited By Jyoti,Updated: 12 Sep, 2021 03:26 PM
जैसे कि सब जानते हैं 10 सितंबर से इस वर्ष के 10 दिवसीय गणेश उत्सव का आगाज़ हो चुका है। जिस दौरान भक्त अपने घरों में बप्पा को विराजमान कर चुके हैं और धूम धाम से इनकी पूजा अर्चना कर रहे
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जैसे कि सब जानते हैं 10 सितंबर से इस वर्ष के 10 दिवसीय गणेश उत्सव का आगाज़ हो चुका है। जिस दौरान भक्त अपने घरों में बप्पा को विराजमान कर चुके हैं और धूम धाम से इनकी पूजा अर्चना कर रहे हैं। तो वहीं लोग अपनी क्षमता के अनुसार इन्हें घर में रख रहे हैं। धार्मिक शास्त्रों में वर्णन है कि गणेश उत्सव के दौरान इन्हें डेढ़ दिन, तीन दिन और सात दिन स्थापित किया जा सकता है। ये पूरी तरह से भक्त की श्रद्धा पर निर्भर करता है। परंतु जो बात सबसे जरूरी होती है वो इस दौरान बप्पा की पूजा कैसे की जानी चाहिए, या इन्हें प्रसन्न करने के लिए किन मंत्रों का व पाठ का जप कर सकते हैं। आज इस आर्टिकल में हम आपको गणेश जी के एक ऐसे ही स्तोत्र के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका अगर आप गणेश उत्सव के दौरान पाठ करते हैं तो गणपति बप्पा के साथ-साथ देवी लक्ष्मी की भी अपार कृपा प्राप्त होती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस गणपति स्तोत्र के जप करने वाले जातक के बप्पा सभी कष्ट हर लेते हैं। इतना ही नहीं व्यक्ति के घर सुख-समृद्धि का वास होता है।इसके अतिरिक्त ये भी कहा जाता है गणेश ऋणमुक्ति स्तोत्र का पाठ करने से कर्ज से मुक्ति मिलती है। यहां जानें कौन सा है ये गणपति स्तोत्र
गणपति स्तोत्र
ध्यान : ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्
मूल-पाठ
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,
एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित:,
दारिद्रयं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत्.