गंगा दशहरा: गंगादित्य मंदिर का दर्शन रोगों और अभाग्य से देता है छुटकारा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Jun, 2019 02:19 PM

ganga dussehra 2019

महाराज सगर सौवां अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे। देवराज इंद्र ने उनके यज्ञीय अश्व को चुरा कर महर्षि कपिल के आश्रम में बांध दिया। महाराज सगर की छोटी रानी सुमति के साठ हजार पुत्र भूमि को खोदते हुए

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महाराज सगर सौवां अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे। देवराज इंद्र ने उनके यज्ञीय अश्व को चुरा कर महर्षि कपिल के आश्रम में बांध दिया। महाराज सगर की छोटी रानी सुमति के साठ हजार पुत्र भूमि को खोदते हुए यज्ञीय अश्व की खोज में महर्षि कपिल के आश्रम में आ पहुंचे। वहां अश्व चरता हुआ दिखाई पड़ा। वे महर्षि को चोर समझ कर उन्हें मारने दौड़े। सगर-पुत्रों का दुर्भाग्य ही उन्हें यहां ले आया था। भगवान कपिल की क्रोधाग्रि की तीव्र ज्वाला में सब के सब जल कर भस्म हो गए। महाराज सगर के आदेश से अंशुमान यज्ञीय अश्व की तलाश में गए। उन्हें रास्ते में ही अपने पूर्वजों के भस्म होने का समाचार देवर्षि नारद से प्राप्त हुआ। वे भगवान कपिल के आश्रम में जाकर उनकी आज्ञा से अश्व लाए और महाराज सगर का यज्ञ पूरा हुआ।

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अंशुमान को महर्षि कपिल ने बताया कि मेरी क्रोधाग्रि से भस्म हुए तुम्हारे पूर्वजों का उद्धार केवल गंगाजल से ही संभव है। महाराज अंशुमान और उनके पुत्र दिलीप दोनों ने गंगा को पृथ्वी पर उतारने का अथक प्रयत्न किया परन्तु सफल न हुए। दिलीप के पुत्र भगीरथ ने पिता और पितामह के उद्देश्य को सफल करने का प्रण किया और शुरू हुआ भगीरथ का प्रयत्न।

भगीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी हिमालय की ज्येष्ठ पुत्री गंगा को धरा पर भेजने के लिए प्रस्तुत हुए। भगीरथ ने पुन: गंगा जी को धारण करने के लिए भगवान शंकर की कठोर तपस्या करके उनकी स्वीकृति प्राप्त की। उन्होंने अपनी जटाओं में गंगा जी को धारण कर लिया। गंगा पूरे एक वर्ष तक शिव की जटाओं में चक्कर लगाती रहीं और निकलने का मार्ग न पा सकीं। भगीरथ की प्रार्थना पर शंकर जी ने गंगा को छोड़ दिया और उनकी सात धाराएं हो गईं।

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महाराज भगीरथ दिव्य रथ पर आगे-आगे चल रहे थे और गंगा जी उनका अनुगमन कर रही थीं। इस प्रकार भगीरथ काशी पहुंचे। वहां भगवान सूर्य ने गंगा की स्तुति की। आज भी वह गंगा को सम्मुख कर रात-दिन उनकी स्तुति करते रहते हैं और तबसे उनका नाम गंगादित्य हुआ। उनके दर्शनमात्र से मनुष्य शुद्ध हो जाता है। गंगादित्य मंदिर का दर्शन करने वाला व्यक्ति न तो दुर्गति को प्राप्त होता है और न रोगाक्रांत ही होता है। गंगादित्य का मंदिर वाराणसी के ललिता घाट पर स्थित है। पुरातनकाल में गंगादित्य का विग्रह अगस्त्य कुण्ड के दक्षिण में गंगाकेशव एवं गंगा मैया के स्वरुप के साथ विराजित था। वर्तमान समय में ये तीनों प्रतिमाएं ललिता घाट पर विराजित हैं। श्रद्धालुओं के दर्शन-पूजा के लिए ये मंदिर सारा दिन खुला रहता है।

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