Edited By Jyoti,Updated: 09 Jun, 2022 10:21 AM
09 जून ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के समाप्ति के बाद देश में गंगा दशहरे का पर्व मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन धरती पर मां गंगा का अवतरण हुआ था। अतः इस दिन गंगा मां की पूजा
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09 जून ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के समाप्ति के बाद देश में गंगा दशहरे का पर्व मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन धरती पर मां गंगा का अवतरण हुआ था। अतः इस दिन गंगा मां की पूजा करने से व गंगा में स्नान करने से जातक के पुण्य की प्राप्ति तो होती ही है साथ ही साथ पापों आदि से मुक्ति मिलती है तथा जीवन की कठिनाईयां भी दूर होती हैं। तो वहीं स्कन्दपुराण में भी गंगा दशहरे के दिन का विशेष महत्व बताया गया है। इसके अतििरक्त ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक इस दिन जल, अन्न, फल, वस्त्र,पूजन व सुहाग सामग्री, घी, नमक, तेल, शक्कर और स्वर्ण का दान करने व्यक्ति को हर तरह का लाभ मिलता है।
इसके अलावा गंगा दशहरा के दिन मां गंगा की वरदान पाने के लिए इस मंत्र का जाप भी करना चाहिए। मान्यता है कि इस मंत्र के जाप से मनुष्य के पाप नष्ट होते हैं और उसे परम पुण्य की प्राप्ति होती है।
''ॐ नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः'
तो आइए अब इस उपलक्ष्य के अवसर जानते हैं इस दिन से जुड़ी धार्मिक कथा-
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में अयोध्या में राजा भागीरथ हुआ करते थे। वह भगवान श्रीराम के पूर्वज भी माने जाते हैं। राजा भागीरथ के पूर्वजों की मुक्ति के लिए गंगा के जल में उनका तर्पण करने की जरूरत थी। उस समय गंगा नदी सिर्फ स्वर्ग में बहती थी। भागीरथ के दादा और पिता ने गंगा को धरती पर लाने के लिए कई सालों तक तपस्या की लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद राजा भागीरथ भी हिमालय में चले गए और कठोर तपस्या में लीन हो गए। एक दिन गंगा देवी भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गईं और उन्होंने धरती पर आने का आग्रह स्वीकार कर लिया। मगर भागीरथ के सामने एक दुविधा आ खड़ी हुई। दरअसल, गंगा का वेग इतना ज्यादा था कि उसके धरती पर कदम रखते ही तबाही का खतरा हो सकता था।
राजा भागीरथ बेहद विचलित हो गए और भगवान शिव की अराधना करने लगे। इस बीच माता गंगा अपने गति को लेकर अहंकार में थीं। सिर्फ महादेव यानी भगवान शिव ही थे जो गंगा के वेग को नियंत्रित कर सकते थे। राजा भागीरथ को जब ये पता चला तो उन्होंने शिवजी की तपस्या शुरू कर दी। करीब एक साल तक वे एक पैर के अंगूठे पर खड़े होकर बिना कुछ खाए पिए शिवजी की आरधना करते रहे। भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और गंगा को धरती पर लाने में उनकी सहायता करने का आग्रह स्वीकार कर लिया।
फिर ब्रह्माजी ने अपने कमंडल से गंगा की धारा प्रवाहित की। शिवजी ने अपने जटाओं में उस धारा को समेट लिया। लगभग 32 दिनों तक गंगा नदी शिव की जटाओं में विचरण करती रही। फिर ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन महादेव ने अपनी एक जटा खोली और गंगा का धरती पर अवतरण हो गया। भागीरथ ने हिमालय के दुर्गम पहाड़ों के बीच गंगा नदी का रास्ता बनाया और उसका पानी मैदानी इलाके तक पहुंचाने में मदद की। इसके बाद राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजल से तर्पण कर उन्हें मुक्ति भी दिलाई। राजा भागीरथ के वजह से माता गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था इसीलिए उन्हें भागीरथी भी कहा जाता है।