गरुड़ पुराण: महिलाओं को भी है पिंडदान करने का अधिकार

Edited By Jyoti,Updated: 18 Jun, 2019 03:43 PM

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हिंदू धर्म में कुल 16 संस्कार हैं, जिनमें से एक पितृ तर्पण। हिंदू धर्म के शास्त्रओं के अनुसार हर किसी के लिए जीवन में एक बार पितृ तर्पण करना ज़रूरी बताया गया है।

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हिंदू धर्म में कुल 16 संस्कार हैं, जिनमें से एक पितृ तर्पण। हिंदू धर्म के शास्त्रओं के अनुसार हर किसी के लिए जीवन में एक बार पितृ तर्पण करना ज़रूरी बताया गया है। बता दें कि पितृ तर्पण से मतलब अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति व तृप्ति के लिए अनुष्ठान करने होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं जिसमे हर कोई अपने पूर्वजों की सेवा करता है। आमतौर पर पुरुषों को ही पितृ तर्पण करते देखा जाता है क्योंकि कुछ मान्यताओं की मानें तो महिलाओं को श्राद्ध करने की अनुमति नहीं होती। मगर आपको बता दें कि ऐसा बिल्कुल नहीं है। बल्कि हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में से एक गरुड़ पुराण में महिलाओं का पिंडदान करने का अधिकार प्रदान है। जी हां, बहुत से लोग होंगे जिन्हें इश बात पर विश्वास नहीं होगा। लेकिन अब आपको मानने न मानने से सच बदल नहीं जाएगा। तो चलिए जानते हैं इससे जुड़ी रोचक बातें जिससे शायद आप सब अंजान होंगे।
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बता दें कि महाराष्ट्र सहित कई उत्तरी राज्यों में अब पुत्र/पौत्र नहीं होने पर पत्नी, बेटी, बहन या नातिन ने भी सभी मृतक संस्कार करने आरंभ कर दिए हैं। काशी आदि के कुछ गुरुकुल आदि की संस्कृत वेद पाठशालाओ में तो कन्याओं को पांण्डित्य कर्म और वेद पठन की ट्रेनिंग भी दी जाती है जिसमें महिलाओं को श्राद्ध करने कराने का प्रशिक्षण भी शामिल हैं।

मान्यताओं के अनुसार अगर कोई संतानहीन स्त्री हो जाए तो ऐसी स्थिति में वो स्त्री अपने पति के नाम श्राद्ध का संकल्प रखकर ब्राह्मण या पुरोहित परिवार के किसी पुरूष सदस्य से ही पिंडदान आदि का कार्य पूरा करवा सकती है। इसी प्रकार जिन पितरों के कन्याएं ही वंश परंपरा में हो तो उन्हें पितरों के नाम व्रत रखकर उसके दामाद या धेवते, नाती आदि ब्राहमण को बुलाकर श्राद्धकर्म की निवृत्ति करा सकते हैं। साधु सन्तों के शिष्य गण या विशेष शिष्य भी श्राद्ध कर सकते है।
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देवी सीता ने किया था पिंडदान
वाल्मिकी रामायण में सीता द्वारा पिंडदान देकर दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिलने का संदर्भ आता है। वनवास के दौरान भगवान राम लक्ष्मण और सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे। श्राद्ध कर्म के लिए ज़रूरी सामग्री जुटाने के लिए श्रीराम और लक्ष्मण नगर की ओर चल दिए, जिस बीच दोपहर हो गई। पिंडदान का समय निकलता जा रहा था और सीता जी की व्यग्रता बढ़ती जा रही थी। अपराह्न में तभी दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की मांग से गया में फल्गू नदी पर अकेली सीता जी असमंजस में पड़ गई। सीता मां ने फल्गू नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान दे दिया। सामान के अभाव में श्रीराम ने पिण्डदान देने पर सीता पर विश्वास नहीं किया तब सीता जी ने दशरथ का ध्यान करके उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की। दशरथ जी ने सीता जी की प्रार्थना स्वीकार कर श्री राम को बताया था कि माता सीता ने ही उनका पिंडदान किया।

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