Kundli Tv- घर में चल रहे महाभारत को दूर करेगा ये जाप

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Jul, 2018 03:10 PM

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गीता माता से प्रेरणा पाएं, गृहस्थ जीवन आदर्श बनाएं  सप्तश्लोकी गीता जीभ की भांति कोमल बनें अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्। स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते।। —गीता 17/15

गीता माता से प्रेरणा पाएं, गृहस्थ जीवन आदर्श बनाएं 

सप्तश्लोकी गीता

जीभ की भांति कोमल बनें


अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्।
स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते।।
—गीता 17/15


व्याख्या : गृहस्थ जीवन को सुंदर, सुखद सद्भावनामय आदर्श गृहस्थ बनाने के लिए यह श्लोक अत्यंत आवश्यक प्रेरणा के रूप में है! असंयमी, अप्रिय, अमर्यादित वाणी से प्राय: गृहस्थ जीवन का पूरा वातावरण बिगड़ा रहता है। बिना सोचे-विचारे एकदम अधीरता, आवेश, आक्रोश की भाषा न केवल शांति बिगाड़ती है अपितु प्यार में दरार डालती है। धीरे-धीरे वातावरण को विषैला बनाती है। वाणी के कठोर-कड़वे शब्द ही घर-परिवार में कलह-क्लेश, ईर्ष्या-द्वेष रूपी महाभारत का कारण बनते हैं।


विचार करो : जीभ को भगवान ने कितना कोमल बनाया है। शरीर के प्रत्येक अंग में मांस के साथ हड्डी है, जीभ ही ऐसी है, जहां हड्डी नहीं। इसका सीधा-सा अभिप्राय यही है-कोमल, मधुर, किसी को उद्विग्र न करने वाले प्रिय और हितकारी वचनों का वाणी से प्रयोग हो! वाणी का सही प्रयोग घर-परिवार के वातावरण को स्वर्ग तुल्य बना देता है, वहीं वाणी का कठोरतापूर्वक दुरुपयोग अच्छे-भले वातावरण में दुर्भावनाएं पैदा कर नरक जैसी स्थिति खड़ी कर देता है।


मीठी वाणी आपको मानसिक शांति-संतुष्टि देगी, जीवन का गौरव बनाएगी, पारिवारिक सद्भावना एवं सामाजिक आदर बढ़ाएगी और भगवान की प्रसन्नता भी। किसी का स्वभाव कठोर है, तो भी अपनी कोमलता नहीं छोड़ो। अंतत: लाभ की स्थिति में कोमलता ही रहती है। दांत अपनी कठोरता नहीं छोड़ते। कभी-कभी जीभ को काट भी लेते हैं तो भी जीभ अपने स्वभाव में रहती है। दांतों में कभी कुछ फंस जाने पर जीभ बार-बार उस स्थान को तब तक सहलाती है, जब तक फंसा हुआ कण निकल नहीं जाता। अंतिम स्थिति देखें-दांत कठोर हैं, टूट जाते हैं, जीभ कोमलता छोड़ती नहीं, बनी रहती है।


आओ जीभ की इस कोमलता को बनाए रखें। मेरे शब्दों से न किसी के मन को कष्ट पहुंचे, न किसी का अप्रिय या अहित हो-मुझे ऐसा निश्चित करना है। हर घर-परिवार में यदि सब ऐसा निश्चय कर लें, तब भला क्यों नहीं गृहस्थ आदर्श बनेगा। गीता के इस श्लोक में साथ ही एक और आवश्यक प्रेरणा है-स्वाध्याय और नाम-जाप का अभ्यास। गीता पाठ एवं नाम जाप का निश्चित नियम बनाएं। दिन भर वाणी न जाने किस-किस रूप में क्या-क्या चर्चा करती रहती है। गीता पाठ और भगवान के नाम जाप का वाणी से अभ्यास न केवल वाणी के दोषों को समाप्त करेगा अपितु मानसिक भावों में शुद्धता-शीतलता लाएगा।


यही नहीं यदि ऐसा संभव हो कि एक बार नित्य प्रति परिवार के सभी सदस्य मिल बैठ कर एक साथ सस्वर गीता पाठ और कुछ देर नाम जाप करें-तब तो आप स्वयं देखेंगे अपने घर-परिवार में आदर्श गृहस्थाश्रम का स्वरूप!

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