Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Dec, 2019 08:04 AM
महाभारत के युद्ध का निर्णय उसी दिन हो गया था जब अर्जुुन और दुर्योधन भावी युद्ध के लिए सहायता लेने भगवान श्री कृष्ण के पास द्वारिकापुरी पहुंचे। सबसे पहले दुर्योधन पहुंचा। उस समय भगवान श्रीकृष्ण सो रहे थे।
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महाभारत के युद्ध का निर्णय उसी दिन हो गया था जब अर्जुुन और दुर्योधन भावी युद्ध के लिए सहायता लेने भगवान श्री कृष्ण के पास द्वारिकापुरी पहुंचे। सबसे पहले दुर्योधन पहुंचा। उस समय भगवान श्रीकृष्ण सो रहे थे। वह उनके सिरहाने जा बैठा। इसके कुछ देर बाद पांडुपुत्र अर्जुन भी सहायता लेने के लिए भगवान श्री कृष्ण के पास आए और उन्हें सोया देख उनके चरणों में जा बैठे। जब भगवान श्री कृष्ण की निंद टूटी तो उनकी नज़र सबसे पहले अर्जुन पर पड़ी। भगवान ने उनसे आने का कारण पूछा तो अर्जुन बोले, ‘‘भगवन! मैं भावी युद्ध के लिए आप से सहायता प्राप्त करने आया हूं।’’
अर्जुन के इतना कहते ही दुर्योधन बोल उठा, ‘‘हे कृष्ण! चूंकि सहायता प्राप्त करने के लिए सबसे पहले मैं आया हूं इसलिए सहायता मांगने का पहला अधिकार मेरा है।’’
दुर्योधन की वाणी सुनकर भगवान श्री कृष्ण ने पीछे घूमकर देखा तो वह बोले, ‘‘हे दुर्योधन! चूंकि अर्जुन मेरे सामने थे इसीलिए मेरी नजर पहले अर्जुन पर पड़ी। फिर भी मैं तुम दोनों की सहायता करूंगा। तुम में से मैं एक को अपनी नारायणी सेना दूंगा तथा दूसरे के साथ मैं स्वयं रहूंगा किन्तु न तो मैं युद्ध करूंगा और न ही शस्त्र धारण करूंगा।’’
तब दुर्योधन ने भगवान की सेना लेने की इच्छा व्यक्त की। वह वास्तव में भगवान की सेना लेने ही आया था। भगवान गोविंद ने उसे अपनी सेना दे दी लेकिन अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण को ही मांगा। तब भगवान ने पार्थ से पूछा, ‘‘मेरे युद्ध न करने के निर्णय के बाद भी तुमने मुझे ही क्यों मांगा?’’
तब अर्जुन बोले, ‘‘प्रभु! मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि जहां आप स्वयं विराजमान होंगे वहां विजय निश्चित है।’’
वास्तव में सच्चा भक्त वही होता है जो सांसारिक बल और ऐश्वर्य पर आश्रित न होकर भगवान के आश्रय में रहकर सभी कर्म करता है। अर्जुन इस तथ्य से भली-भांति परिचित थे कि चाहे कौरवों के पास सैन्य बल अधिक था परंतु जिस पक्ष में भगवान श्रीकृष्ण होंगे, विजय श्री कहीं और जा ही नहीं सकती।