ग्वालियर के गोपाल कृष्ण मंदिर में पहली बार भक्तों के बिना मनाया गया श्री कृष्ण जन्मोत्सव

Edited By Jyoti,Updated: 13 Aug, 2020 12:48 PM

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ग्वालियर के गोपाल मंदिर में प्रतिष्ठत राधा-कृष्ण को हर बार की तरह इस बार भी जन्माष्टमी पर बेशकीमती राजसी जेवरात से सजाया गया है। हालांकि इस बार श्रद्धालुओं को श्रंगारित आराध्य के दर्शन प्रत्यक्ष नहीं हो पाए।

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ग्वालियर के गोपाल मंदिर में प्रतिष्ठत राधा-कृष्ण को हर बार की तरह इस बार भी जन्माष्टमी पर बेशकीमती राजसी जेवरात से सजाया गया है। हालांकि इस बार श्रद्धालुओं को श्रंगारित आराध्य के दर्शन प्रत्यक्ष नहीं हो पाए। देश भर में COVID-19 के संक्रमण फैलने की परिस्थितियों के कारण इस बार त्योहारों पर अतिरिक्त सावधानियां बरती जा रहीं हैं। कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए श्रद्धालुओं को प्राचीन गोपाल मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया। बेशकीमती जेवरात से श्रंगारित राधा-कृष्ण के दर्शनों के लिए मंदिर के बाहर बड़ी स्कीन लगाई गई है। स्क्रीन पर दिन बुधवार शाम से राधा-कृष्ण के श्रंगारित विग्रह के दर्शन करवाए गए। ग्वालियर के सिंधिया राजवंश द्वारा फूलबाग परिसर में सर्वधर्म समभाव की भावना को ध्यान में रखते हुए 100 साल पहले मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा,चर्च और थियोसोफिकल भवन का निर्माण कराया गया था। 
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गोपाल मंदिर की खास बात यह है कि सिंधिया राजवंश ने मंदिर के लिए बेशकीमती हीरे-मोती, पन्ना जैसे जवाहरात से सुसज्जित सोने-चांदी के आभूषण बनवाए थे। आभूषण नगर निगम की संपत्ति हैं, और हर साल जन्माष्टमी के 1 दिन पहले आभूषणों को बैंक-लॉकर निकालकर निगम की ट्रेजरी में रखा जाता है। इन जेवरात से राधा-कृष्ण का श्रंगार किया जाता है। रात 12:00 बजे श्रीकृष्ण के अवतरण का समय व्यतीत होने के बाद आभूषणों को उतार कर वापस निगम की तिज़ोरी में रख दिया जाता है। दूसरे दिन उसे सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के लॉकर में सुरक्षित रख दिया जाता हैं।

दशकों से गोपाल मंदिर के राधा-कृष्ण को राजसी जेवरों से सजाने की परंपरा दशकों से चली आ रही है, लेकिन इस बार COVID-19 के कारण मंदिर को आम भक्तों के लिए नहीं खोला गया। दो-चार की संख्या में मंदिर में भगवान के दर्शन बुधवार सुबह 10 बजे तक किए जा सकने थे, लेकिन प्रसाद, फूल तथा माला इन सब पर रोक लगाई गई है। 
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बताया जा रहा है यह पहला मौका है जब गोपाल मंदिर में भगवान का जन्मोत्सव भक्तों के बीच नहीं मनाया गया। हालांकि इसकी भरपाई के लिए, मंदिर प्रशासन ने राधा-कृष्ण के दर्शनों के लिए मंदिर के बाहर बड़ी स्क्रीन लगाकर आमजन को दर्शन करवाए। सिंधिया रियासत के बनवाए गए इस मंदिर में राधा-कृष्ण की प्रतिमाओं के लिए बहुमूल्य रत्नों से जड़ित सोने की जेवरात एंटीक हैं। इसलिए इनका बाजार मूल्य आंका ही नहीं जा सकता। श्री राधा-कृष्ण के गहनों में कई तरह के बेशकीमती रत्म जड़े हुए हैं।

भगवान के जेवरातों में राधाकृष्ण का सफ़ेद मोती वाला पंचगढ़ी हार, सात लड़ी हार, जिसमें 62 असली मोती और 55 पन्ने लगे हैं। कृष्ण भगवान सोने के तोड़े तथा सोने का मुकुट, राधाजी का ऐतिहासिक मुकुट, जिसमें पुखराज और माणिक जड़ित के साथ बीच में पन्ना लगा है। यह मुकुट लगभग तीन किलो वजन का है। राधा रानी के मुकुट में 16 ग्राम पन्ना रत्न लगे हुए हैं। श्रीजी तथा राधा के झुमके, सोने की नथ, कंठी, चूड़ियां, कड़े इत्यादि हैं।

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भगवान के भोजन के लिए सोने, चांदी के प्राचीन बर्तन भी हैं। साथ ही भगवान की समई, इत्र दान, पिचकारी, धूपदान, चलनी, सांकड़ी, छत्र, मुकुट, गिलास, कटोरी, कुंभकरिणी, निरंजनी आदि भी हैं।  पंजाब केसरी के लिए अंकुर जैन की रिपोर्ट के मुताबिक गोपाल मंदिर में आभूषणों की निगरानी के लिए CCTV कैमरे लगाए गए। साथ ही भारी संख्या में पुलिस बल तैनात रही। बता दें पुलिस सुरक्षा में आएंगे जेवरात भगवान के जेवरातों को बैंक के लॉकर से निकाल कर नगरनिगम की ट्रेजरी में रखवाया जाता है। बाद में दूसरे दिन सभी जेवरात संदूक में बंद कर पुलिस की भारी सुरक्षा में बैंक लॉकर तक पहुंचाएं जाते हैं। भगवान को जेवरात पहनाने से पहले उनकी पूरी पड़ताल की जाती है। इसके बाद इन जेवरातों को भगवान को पहना दिया जाता है।

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