Govardhan Puja 2020: ... तो इसलिए होती है गिरिराज देवता की पूजा?

Edited By Jyoti,Updated: 15 Nov, 2020 01:36 PM

govardhan puja 2020

प्रत्येक वर्ष दिवाली के ठीक अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। साथ ही साथ इस अन्नकूट उत्सव को भी धूम धाम से मनाया जाता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण, गिरिराज पर्वत तथा गायों की पूजा का महत्व होता है।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
प्रत्येक वर्ष दिवाली के ठीक अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। साथ ही साथ इस अन्नकूट उत्सव को भी धूम धाम से मनाया जाता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण, गिरिराज पर्वत तथा गायों की पूजा का महत्व होता है। पुराणों आदि के वर्णन के अनुसार इंद्रदेव के जल प्रकोप से बज्रवासियों की रक्षा करने के लिए अपनी कनिष्ठठा अंगुली पर गिरिराज पर्वत को उठा लिया था। कहा जाता है इसके बाद से ही गोवर्धन पूजा की पंरपरा प्रचलन में आई थी। शास्त्रों में ऐसा वर्णन मिलता है कि स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने बज्रवासियों को इस दिन गिरिराज देवता की पूजा का आदेश दिया था। तो आइए जानते हैं इससे जुड़े संपूर्ण कथा साथ ही साथ जानेंगे कि इस दिन का भगवान कृष्ण के साथ-साथ गायों का क्या महत्व है। 
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शास्त्रों आदि में वर्णित कथाओं के अनुसार द्वापर युग में एक बार भगवान श्री कृष्ण ने समस्त बृजवासियों को इंद्र देव की पूजा करते हुए देखा तो उनके मन में इसका कारण जानने की इच्छा जागी। क्योंकि न केवल बज्रवासी बल्कि स्वयं इंद्र देव की मां भी उनकी पूजा कर रही थी। जब उन्होंने इसका कारण पूछा तो उन्हेम बताया गया कि दरअसल इंद्र देव बारिश करते हैं, तो खेतों में अन्न होता है गायों को चारा मिलता है।  ये जानने के बाद श्री कृष्ण ने कहा कि हमारी गायें तो गोवर्धन पर्वत पर ही रहती हैं इसलिए गोवर्धन पर्वत की पूजा की जानी चाहिए। जिसके बाद से बृजवासियों ने इंद्र देव की पूजा बंद कर गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर, जिस कारण इंद्र को बहुत क्रोध आया।
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इसी कोध्र के आवेश में आकर उन्होंने मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। चारों तरफ पानी के कारण बृजवासियों की जान के खतरा हो गया, जिसके बाद उन्होंने श्री कृष्ण के आगे गुबार लगाई। कथाओं के मुताबिक तब श्री कृष्ण ने अपनी कनिष्ठ उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत को उठा लिया। तब सभी ने इसके नीचे शरण लेकर अपनी जान बचाई। तो वहीं उधर जब इंद्र देव को जब पता चला कि श्री कृष्ण साक्षात विष्णु के ही अवतार हैं, तब उन्होंने उनसे क्षमा याचना की। 


गोवर्धन पूजा में गायों का महत्व
चूंकि श्री कृष्ण गाय चराते थे इसलिए उन्हें ग्वाला भी कहा जाता है। कथाओं की मानें तो द्वापर युग में गोवर्धन पर्वत पर गायें चरती थीं। भगवान कृष्ण ने पर्वत को ही गायों के भरण पोषण का श्रेय दिया और बृजवासियों से उनकी पूजा करने का आग्रह किया। कहा जाता है यही कारण है कि गाय के गोबर से घर में पर्वत बनाकर पूजा की जाती है।  
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