Gudi Padwa 2022: 1 ही क्लिक में जानिएं इसे मनाने से जुड़े धार्मिक कारण

Edited By Jyoti,Updated: 29 Mar, 2022 04:55 PM

gudi padwa 2022

हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवसंवत्सर का आरंभ होता है, जिस दिन से चैत्र नवरात्रि की भी शुरुआत होती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इसे

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हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवसंवत्सर का आरंभ होता है, जिस दिन से चैत्र नवरात्रि की भी शुरुआत होती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इसे गुड़ी पड़वा के नाम से मनाया जाता है। हिंदू धर्म में गुड़ी पड़वा का अधिक महत्व है। बता दें गुड़ी का अर्थ ध्वज यानि झंडा और प्रतिपदा तिथि को पड़वा कहते हैं। अगर अंग्रेजी कैलेंडर मं देखें तो इस बार गुड़ी पड़वा का पर्व 02 अप्रैल 2022 को पड़ रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पूर्व स्नान आदि के बाद विजय के प्रतीक के रूप में घर मे सुंद गुड़ी लगाकर विधिवत रूप से उसका पूजन करती हैं। ऐसा कहा जाता है कि ऐसा करने से नकारात्मकता दूर होती है तथा घर में सुख-शांति बनी रहती है। जानकारी के लिए बता दें मुख्य रूप से गुड़ी पड़वा का पर्व कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश में धूम धाम से मनाया जाता है। कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दिन को स्वास्थ्य की दृष्टि से भी देखा जाता है। इसके अलावा इस दिन का क्या महत्व है व इससे जुड़ी मान्यताएं आदि क्या है, आइए जानें- 
PunjabKesari Gudi Padwa, Gudi Padwa 2022, Gudi Padwa Festival, Gudi padwa in marathi, Gudi padwa is celebrated in which state, Gudi Padwa Myth, Gudi Padwa Religious Story, Gudi padwa Celebration, Dharmगुड़ी पड़वा से जुड़ा धार्मिक तथ्य-
पौराणिक व प्रचलित मान्यताओं के अनुसार गुड़ी पड़वा के दिन जगतपिता ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना का कार्म प्रारंभ किया था तथा इसी दिन से सतयुग की शुरुआत हुई थी। अतः इसे सृष्टि का प्रथम दिन व युगादि तिथि के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा चूंकि इस दिन से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है इसलिए इस दिन ध्वजारोहण, संवत्सर के पूजन के साथ-साथ घटस्थापना का भी विधान है। 

इसके अलावा इससे जुड़ी अन्य पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में दक्षिण भारत पर बाली का अत्याचारी शासन था। जब श्री राम रामायण काल के दौरान सीता जी ढूंढते हुए जंगल-जंगल फिर रहे थे तब उनकी मुलाकाल सुग्रीव से हुई तो उन्होंने श्री राम को बाली के अत्याचारों से अवगत कराया। जिसके बाद भगवान श्री राम ने बाली का वध करके वहां के लोगों को उसके कुशासन से मुक्ति दिलाई। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि थी। अतः इसलिए इस दिन गुड़ी या विजय पताका फहराई जाने की परपंरा है। 
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इसके अलावा एक ऐतिहासिक कथा के अनुसार शालिवाहन नमक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उस पर पानी छिड़ककर उनमें प्राण फूंक दिए, इतना ही नहीं इसी सेना की मदद से दुश्मनों  को पराजित किया। मान्यता है कि इस विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक संवत का प्रारंभ माना जाता है।

ये भी कहते हैं प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री ने अपने अनुसन्धान के फलस्वरूप सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करते हुए भारतीय ‘पंचांग ‘ की रचना की थी। इसके अतिरिक्त इस दिन उज्जैयिनी के सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर विक्रम संवत का प्रवर्तन किया था। तथा इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। कहा जाता है कि इसी दिन से रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है।
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यहां जानें कैसे मनाया जाता है गुड़ी पड़वा का पर्व-
इस दिन लोग अपने घरों की सफाई करने के बाद रंगोली, आम या अशोक के पत्तों से घर को तोरण से सजाते हैं। घर के आगे एक झंडा लगाया जाता है तथा इसके अलावा एक बर्तन पर स्वस्तिक बनाकर उस पर रेशम का कपड़ा लपेट कर रखा जाता है। सूर्यदेव की आराधना के साथ ही सुंदरकांड, रामरक्षास्रोत और देवी भगवती की पूजा एवं मंत्रों का जप किया जाता है व बेहतर स्वास्थ्य के लिए नीम की कोपल गुड़ के साथ खाई जाती हैं। ये भी कहा जाता है कि इस दिन खाली पेट पूरन पोली का सेवन करने से चर्म रोग की समस्या भी दूर होती है। बताया जाता है इस दिन कई तरह के पकवान जैसे श्री खंड, पूरनपोली, खीर आदि बनाए जाते हैं। 

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