Edited By Jyoti,Updated: 04 Jul, 2019 04:10 PM
हिंदू धर्म बहुत बड़ा है। कहते हैं इसको जानने वाले की इच्छा खत्म हो सकती है लेकिन इस धर्म से जुड़े अद्भुत रहस्य आदि कभी नहीं हो सकते। मान्यताओं के अनुसार रोज़ हिंदू धर्म का एक न एक पर्व त्यौहार होता है।
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हिंदू धर्म बहुत बड़ा है। कहते हैं इसको जानने वाले की इच्छा खत्म हो सकती है लेकिन इस धर्म से जुड़े अद्भुत रहस्य आदि कभी नहीं हो सकते। मान्यताओं के अनुसार रोज़ हिंदू धर्म का एक न एक पर्व त्यौहार होता है। मगर कुछ त्यौहार अधिक महत्वपूर्ण व खास होते हैं। इन्हीं में से एक है नवरात्रि। हिंदू धर्म में कुल 4 बार नवरात्रि आते हैं। 03 जुलाई से इस साल के दूसरे गुप्त नवरात्रि शुरू हो चुके हैं। कहा जाता है ये चारों नवरात्रि काल ऋतु परिवर्तन के संकेत होते हैं। परंतु ज्यादातर लोग नवरात्रि के बारे में ही जानते हैं। बता दें कि इनमें पहला वासंतिक नवरात्रि है, जो कि चैत्र में आता है। आश्विन माह में आने वाले नवरात्रि शारदीय नवरात्रि कहलाते हैं। हालांकि इसके अलावा भी दो नवरात्र आते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्रि कहा जाता है।
नवरात्रि के बारे में हिंदू धर्म के ग्रंथों में लिखित रूप में वर्णन किया गया है और साथ ही इसका महत्व भी बताया गया है। ज्योतिष के अनुसार इन दिनों में तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है, खासतौर पर इस दौरान धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं।
इस तरह करें आराधना-
धन प्राप्ति हेतु इस विधि से करें पूजा-
लाल आसन पर बैठकर मां की आराधना करें। फिर नौ दिन मां को लाल कपड़े में दो लौंग रखकर चढ़ाएं साथ ही कपूर से आरती करें। नवरात्रि समाप्ती के बाद लौंग लाल कपड़े में बांधकर किसी सुरक्षित जगह रख लें। इससे धन प्रात्ति के आसार बढ़ेंगे।
कारोबार में धन प्राप्ति हेतु इस विधि से करें पूजा-
रोज़ शाम को मां लक्ष्मी का पूजन करें। लक्ष्मी जी के सामने घी का दीपक जलाएं और आरती करें। फिर वहीं उनके सामने बैठकर श्रीसूक्तम का पाठ करें। इसके अलावा गुप्त नवरात्रि में किसी भी दिन कच्चा सूत हल्दी में रंगकर पीला करके लक्ष्मी जी को अर्पित करें और अपने गल्ले में रख लें। आप पर लक्ष्मी जी की कृपा बरसेगी।
हर तरफ़ से धन लाभ के हेतु इस विधि से करें पूजा-
सुबह-शाम दोनों ही समय मां दुर्गा की पूजा करें, सुबह सफ़ेद फूल और शाम को लाल फूल अर्पित करें। इसके साथ ही दोनों समय एक विशेष मंत्र का 108 बार जप करें।
मंत्र-
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥