गुरु प्रदोष व्रत: संध्या काल में कैलाश पर्वत पर भोलेनाथ करते हैं नृत्य

Edited By Jyoti,Updated: 17 Jun, 2020 02:24 PM

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जिस तरह प्रत्येक माह में एकादशी का व्रत मनाया जाता है। ठीक उसी तरह हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत तथा ठीक उसके 1 दिन बाद मासिक शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है

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जिस तरह प्रत्येक माह में एकादशी का व्रत मनाया जाता है। ठीक उसी तरह हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत तथा ठीक उसके 1 दिन बाद मासिक शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इन दोनों व्रतों के नाम से ही ये स्पष्ट होता है कि ये व्रत भगवान शिव जी की समर्पित है। कुछ धार्मिक मान्यताओं की मानें तो हिंदू धर्म में केवल एक ही ऐसे देव हैं जिनकी संध्याकाल में पूजा अधिक लाभकारी मानी जाती है। बता दें प्रदोष का अर्थात संध्या ही होता है, यानि जिस दिन और रात मिलतें, उस घड़ी को ही शास्त्रों में प्रदोष का नाम दिया गया है। कहा जाता है प्रदोष व्रत देवों के देव महादेव की कृपा पाने के लिए अधिक लाभदायक मानी जाती है। तो वहीं शिव पुराण की मानें तो प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा से कुंडली के हर दोष खत्म हो जाते हैं। पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि सबसे पहले चंद्रमा ने भगवान शिव का ये व्रत रखा था। कल यानि 18 जून को प्रदोष व्रत मनाया जाएगा। आगे जानें इससे जुड़ी मान्यताएं-
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सौभाग्य देने वाला है गुरु प्रदोष व्रत- 
ज्योतिष विशेषज्ञों के अनुसार गुरु प्रदोष के दिन इस बार ग्रहों का शुभ संयोग बन रहा है, जिस कारण इस दिन की गई शिव जी की पूजा सौभाग्य प्रधान करवाएगी। खासतौर पर ये व्रत दांपत्ति यानि शादीशुदा लोगों के लिए अधिक खास माना जा रहा है। तो वहीं अन्य जो भी इस दिन भगवान शंकर के साथ-साथ देवी पार्वती की पूजा करेंगे उनको समस्त दोषों से मुक्ति मिलेगी।
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प्रदोष व्रत से जुड़ी मान्यताओं की बात करें तो इस समय भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं। जिस दौरान सभी देवी-देवता उनकी स्तुति करते हैं। यही कारण है कि कहा जाता है कि इस समय शिव जी की पूजा करने से हर तरह की मनोकामना पूरी हो जाती हैं। इस व्रत में भगवान शिव-पार्वती की विशेष पूजा की जाती है। यह व्रत सोमवार के दिन पड़ता है और जो भी इस व्रत को करता है उसकी मनोकामना पूरी होती है। 
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