Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 Jul, 2019 01:29 PM
धर्मग्रंथ गीता की आस्था अवतार में है। यानी किसी खास मकसद के लिए स्वयं भगवान के धरती पर आने में, लेकिन ठीक वहीं पर गीता एक और अवतार की बात कहती है- इंसान में भगवान की। ये
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धर्मग्रंथ गीता की आस्था अवतार में है। यानी किसी खास मकसद के लिए स्वयं भगवान के धरती पर आने में, लेकिन ठीक वहीं पर गीता एक और अवतार की बात कहती है- इंसान में भगवान की। ये दोनों बातें एक-दूसरे की विरोधी हैं। गुरु जो पूरी मानव जाति का आध्यात्मिक उत्थान चाहता है, वह अपने भीतर बसी पवित्र आत्मा की गहराई से बोलता है। श्रीकृष्ण का अवतार हमारे अंदर बसी चेतना का सबसे अद्भुत उदाहरण है। अंदर बसी चेतना का सबसे अद्भुत उदाहरण है निराशा में बसी पवित्रता। भागवत पुराण के अनुसार ‘आधी रात के घने अंधेरे में हम सब के भीतर बसने वाले भगवान देवकी के घर प्रकट हुए, वह तो हर किसी के दिल में बसे हुए हैं।’
श्रीकृष्ण भगवान के जन्म का अर्थ है, रात के अंधेरे में उजाले का पैदा होना। हमारे भीतर अचानक ही एक प्रकाश पुंज का पैदा होना, जिससे जिंदगी नई और तरोताजा हो जाए। जब यह पवित्र आत्मा हमारे भीतर जन्म लेती है तो हमारी जेल के ताले अपने आप खुल जाते हैं। भगवान तो हर जीव के दिल में बसे हैं और जब उन्हें हमसे दूर करने वाला पर्दा उठ जाता है तो हमें दिव्य आवाज सुनाई देती है।
श्रीकृष्ण का जन्म भगवान का अवतार लेना भर ही नहीं है, वह भगवान द्वारा इंसानियत को अपना लेना भी है। गुरु अपने शिष्य को राह दिखाता है। शिष्य अर्जुन है जिसकी आत्मा संघर्ष कर रही है और सच को स्वीकार नहीं कर पा रही है। वह अंधेरे और असत्य की ताकतों से लड़ रहा है। उसकी सीमाएं और नैतिकता उसे ऊपर उठने से रोक रही हैं। अर्जुन रथ पर सवार है लेकिन उसका सारथी श्रीकृष्ण ही उसका मार्गदर्शक है। हर कोई शिष्य है, और भगवान गुरु है।
सारांश में ये कहा जा सकता है की श्रीकृष्ण ही सबसे श्रेष्ठ गुरु हैं। हर युग में उनसे ऊपर न कोई गुरु हुआ है और न होगा।