गुरु शंकराचार्य जयंती- जानिए, इनसे जुड़े रोचक तथ्य

Edited By Jyoti,Updated: 08 May, 2019 05:24 PM

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वैशाख माह शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आदि गुरु शंकराचार्य जयंती का पर्व मनाया जाएगा। शास्त्रों के अनुसार इनका जन्म केरल के कालड़ी गांव मं ब्राह्मण दंपत्ति शिवगुरु नामपुद्र और विशिष्टा देवी के घर में भोलेनाथ के आशीर्वाद के रूप में प्राप्त हुआ था।

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वैशाख माह शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आदि गुरु शंकराचार्य जयंती का पर्व मनाया जाएगा। शास्त्रों के अनुसार इनका जन्म केरल के कालड़ी गांव मं ब्राह्मण दंपत्ति शिवगुरु नामपुद्र और विशिष्टा देवी के घर में भोलेनाथ के आशीर्वाद के रूप में प्राप्त हुआ था। इनके संबंधित ग्रंथों में बहुत मान्यताएं व कथाएं प्रचलित हैं। तो आइए इनकी जयंती के खास पर्व पर आपको इनसे जुड़ी कुछ ऐसी ही बातें बताने जा रहे हैं।
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अगर आज के समय में हम किसी से सुने कि कोई 2 वर्ष का बालक सभी वेद, उपनिषद के ज्ञान प्राप्त कर लें और 7 वर्ष में संयास जीवन में प्रवेश कर जाए तो जाहिर सी बात है कि आपके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रहेगी। लेकिन प्राचीन काल में ऐसा होना संभव था। और इसे सच्चाई में बदला था आदि शंकराचार्य नें। इन्होंने मात्र 2 वर्ष में वेद, उपनिषद के ज्ञान और 7 वर्ष में संन्‍यास जीवन में प्रवेश कर लिया था। लेकिन सवाल ये है इनके ऐसा कर पाने में हाथ किसका था। आप सब ने वो कहावत तो सुनी ही होगी कि हर सफल पुरुष के पीछे किसी न किसी स्‍त्री का हाथ होता है तो बालक ‘शंकर’के जगद्गुरु आदि शंकराचार्य बनने के पीछे भी एक स्‍त्री यानि उनकी मां का हाथ था। इन्होंने न केवल अपने पुत्र को शिक्षा दी बल्कि उसके जगद्गुरु बनने का मार्ग भी प्रशस्‍त कर दिया। मगर सबसे हैरान कर देने वाली बात को ये है कि बालक शंकर के मातृ प्रेम को देखकर एक नदी तक ने अपना रुख मोड़ दिया। 9 मई यानि कल जगद्गुरु शंकराचार्य की जयंती है,इस मौके पर जानते हैं इनके जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें-

इनके जन्म इस संबंध में कथा मिलती है कि शिवगुरु ने अपनी पत्‍नी के साथ पुत्र प्राप्ति के लिए शिव जी की आराधना की जिसके बाद शिवजी ने प्रसन्‍न होकर उन्‍हें एक पुत्र का वरदान दिया लेकिन यह शर्त रखी कि पुत्र सर्वज्ञ होगा तो अल्‍पायु होगा। अगर दीर्घायु पुत्र की कामना है तो वह सर्वज्ञ नहीं होगा। इस पर शिवगुरु ने अल्‍पायु सर्वज्ञ पुत्र का वरदान मांगा। इसके बाद भोलेनाथ ने स्‍वयं ही उनके घर पर जन्‍म लेने का वरदान दिया। इसके बाद वैशाख शुक्ल पंचमी के दिन आदि गुरु का जन्‍म हुआ और उनका नाम शंकर रखा गया।
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कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य जी जीवनपर्यंत सनातन धर्म के जीर्णोद्धार में लगे रहे उनके प्रयासों ने हिंदू धर्म को नव चेतना प्रदान की।

पीठों की स्थापना की
इन्होंने भारत देश के चारों कोनों में अद्वैत वेदांत मत का प्रचार करने के साथ-साथ-पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण इन चारों दिशाओं में मठों की स्थापना धर्म की रक्षार्थ की थी।

सबसे पहले दक्षिण भारत में "वेदांत मठ" की स्थापना श्रंगेरी (रामेश्वरम) में की। जिसे प्रथम मठ "ज्ञानमठ" कहा जाता है।

इसके बाद पूर्वी भारत (जगन्नाथपुरी) में दूसरे मठ "गोवर्धन मठ" की स्थापना की।

आदि गुरु शंकराचार्य जी ने पश्चिम भारत (द्वारकापुरी) में आपने तीसरे मठ "शारदा मठ" की स्थापना की। इस मठ को कलिका मठ भी कहा जाता है।

फिर उत्तर भारत में चौथे मठ "बद्रीकाश्रम" की स्थापना की, जिसे "ज्योतिपीठ मठ" कहा जाता है।

इस तरह आदि गुरु शंकराचार्य जी ने चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना कर पूरे देश में धर्म का प्रचार किया। कहते हैं शंकराचार्य जहां भी जाते थे वहां शास्त्रार्थ कर लोगों को उचित दृष्टांतों के माध्यम से तर्कपूर्ण विचार प्रकट कर अपने विचारों को सिद्ध करते।

मान्यता है कि प्रतिवर्ष आदि गुरु शंकराचार्य जी की पावन जयंती के उपलक्ष्य में चारों शंकराचार्य मठों के साथ-साथ पूरे देश में जप, तप, पूजन हवन का आयोजन कर इनके बताए गए मार्गों पर चलने का शुभ संकल्प लिया जाता है।
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