आज गुरु तेगबहादुर जी का शहीदी दिवस, धर्म की रक्षा के लिए दिया था बलिदान

Edited By ,Updated: 24 Nov, 2016 09:40 AM

guru tegh bahadur   gurdwara sishganj sahib

भारत में बहुत सारे धर्मों के लोग रहते हैं। यहां महापुरुषों ने अपने जीवन का बलिदान देकर धर्म की रक्षा की थी। गुरुद्वारा शीश गंज साहिब, दिल्‍ली के नौ ऐतिहासिक गुरुद्वारों

भारत में बहुत सारे धर्मों के लोग रहते हैं। यहां महापुरुषों ने अपने जीवन का बलिदान देकर धर्म की रक्षा की थी। गुरुद्वारा शीश गंज साहिब, दिल्‍ली के नौ ऐतिहासिक गुरुद्वारों में से एक है। धर्म के नाम पर मर मिटने की बात पर गुरु तेगबहादुर जी का नाम बड़ी इज्जत अौर सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी दी थी। आज के दिन गुरु तेगबहादुर जी का शहीदी दिवस मनाया जाता है।   

 

गुरु तेगबहादुर जी का जन्म पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था। गुरु जी गुरु हरगोबिन्द सिंह जी के पांचवे पुत्र थे। सिखों के आठवें गुरु हरकिशन राय जी की मृत्यु के पश्चात गुरु तेगबहादुर जी को गुरुगद्दी पर बिठाया गया था। गुरु तेगबहादुर जी के बचपन का नाम त्यागमल था। गुरु तेगबहादुर जी ने मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों से लोहा लेते हुए अपनी वीरता का परिचय दिया था। गुरु जी की वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेगबहादुर रख दिया था। 

 

गुरु तेगबहादुर जी ने 20 वर्षों तक 'बाबा बकाला' नामक स्थान पर साधना की थी। आठवें गुरु हरकिशन जी ने अपने उत्तराधिकारी के नाम के लिए बाबा बकाले का निर्देश दिया था। गुरु जी ने धर्म के प्रसार के लिए कई स्थानों का भ्रमण भी किया था। गुरु तेगबहादुर जी ने कुंए अौर धर्मशालाएं बनवाई। गुरु जी के घर 1966 में पटना साहब में पुत्र का जन्म हुआ। जो बाद में दसवें गुरु बने। 

 

कहा जाता है कि अौरंगजेब के दरबार में एक पंड़ित प्रतिदिन श्लोक पढ़ता अौर उसका अर्थ भी बताता था लेकिन पंड़ित कुछ श्लोक छोड़ दिया करता था। एक दिन पंड़ित बीमार हो गया अौर अौरंगजेब को भगवत गीता सुननाने के लिए अपने बेटे को भेज दिया। पंड़ित अपने बेटे को ये बात बताना  भूल गया कि राजा को किन-किन श्लोकों का अर्थ नहीं बताना है। पंड़ित के बेटे ने राजा को पूरी भगवत गीता का अर्थ बता दिया।  भगवत गीता का अर्थ जानकर अौरंगजेब को ज्ञात हो गया कि प्रत्येक धर्म अपने आप में महान है। वह अपने धर्म के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा सहन नहीं कर सकता है। 

 

अौरंगजेब ने सबको इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दिया। उन्होंने आदेश दिया कि इस्लाम धर्म अपनाअों नहीं तो मौत को गले लगाअो। अौरंगजेब के अत्याचारों से दुखी होकर कश्मीरी पंड़ित गुरु जी के पास आए अौर बताया कि कैसे अौरंगजेब उन सभी पर अत्याचार कर रहा है। गुरु जी ने कहा कि इस कार्य के लिए किसी महान व्यक्ति की आवश्यकता है तो पास बेठे बालक गुरु गोबिंद राय ने कहा कि आप से महान कौन हो सकता है। बेटे की बात सुनकर गुरु तेगबहादुर जी ने पंड़ितों से कहा कि आप अौरंगजेब को जाकर बता दो कि यदि गुरु तेगबहादुर जी ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो हम सभी भी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे। यदि अौरंगजेब असफल रहा तो कोई भी इस्लाम ग्रहण नहीं करेगा। 

 

जब गुरु जी अौरंगजेब के दरबार में गए तो राजा ने उन्हें बहुत सारे लालच दिए। जब गुरु जी नहीं माने तो उन पर अत्याचार किए गए। गुरु जी ने अौरंगजेब से कहा कि तुम जबरदस्ती लोगों से इस्लाम ग्रहण करवा रहे हो तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो क्योंकि इस्लाम धर्म यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म करके मुस्लिम बनाया जाए। गुरु जी की बात सुनकर अौरंगजेब गुस्से में आ गाया अौर उन्होंने दिल्ली के चांदनी चौक में गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने का हुक्म जारी कर दिया। गुरु जी फिर भी नहीं डरे अौर उन्होंने हंसते-हंसते बलिदान दे दिया। गुरु जी की याद में उनके शहीदी स्थल पर गुरुद्वारा बनाया गया। जिसका नाम 'गुरुद्वारा शीशगंज साहिब' रखा गया। 

 

गुरु तेगबहादुर जी की बहुत सारी रचनाएं गुरु ग्रंथ साहिब के महला 9 में संग्रहित हैं।। गुरुद्वारे के निकट लाल किला, फिरोज शाह कोटला और जामा मस्जिद भी अन्‍य आकर्षण हैं। गुरु तेगबहादुर जी की शहीदी के बाद उनके बेटे गुरु गोबिन्द राय को गुरु गद्दी पर बिठाया गया। जो सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोबिन्द सिंह जी बने। 

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