एकमात्र ऐसी चीज जो मिटा सकती है हनुमान जी की भूख

Edited By ,Updated: 12 Oct, 2015 10:51 AM

hanuman hunger

भगवान रामचन्द्र जी के राज्यभिषेक को बहुत समय हो चुका था। एक बार माता जानकी के मन में वात्सल्य प्रेम उमड़ा उन्होंने एक दिन हनुमान जी से कहा, "हनुमान कल मैं तुम्हें अपने हाथों से भोजन बनाकर खिलाऊंगी।"

भगवान रामचन्द्र जी के राज्यभिषेक को बहुत समय हो चुका था। एक बार माता जानकी के मन में वात्सल्य प्रेम उमड़ा उन्होंने एक दिन हनुमान जी से कहा,  "हनुमान कल मैं तुम्हें अपने हाथों से भोजन बनाकर खिलाऊंगी।" 

जगन्नमाता स्वयं भोजन बनाकर खिलाए, यह सौभाग्य किसे मिलता है? जो भी हो, दुसरे दिन बड़े स्नेह से खूब उल्लास के साथ विदेहनन्दिनी ने नाना प्रकार के व्यंजन बनाए और हनुमान जी को अपने पास बैठाकर भोजन परोसने लगीं। निखिलेश्वरी रामवल्लभा स्वयं हाथों से परोस रही थीं और उनके परम स्नेह भोजन, लाडले-पुत्र हनुमान भोजन कर रहे थे। थाली में जो कुछ पड़ता वह एक ही ग्रास में मुंह में चला जाता। जानकी जी को चिंता होने लगी। अयोध्या सम्राट के रसोई-घर के व्यंजन समाप्त होने को आए परंतु हनुमान जी खाए ही जा रहे थे। 

अंत में जनकनन्दिनी ने लक्ष्मण जी को बुलवाया और अपनी कठिनाई बतलाई तो लक्ष्मण जी ने कहा ये रुद्र के अवतार हैं, इनको भला कौन तृप्त कर सकता है तभी लक्ष्मण जी ने तुलसी के पत्ते पर चंदन से राम लिख दिया और उसे हनुमान जी के भोजन पात्र में डाल दिया। तुलसी दल मुंह में जाते ही हनुमान जी ने तृप्ति की डकार ली और पात्र में बचे अन्न को अपने पूरे शरीर में मल लिया तथा खुशी से नृत्य करते हुए राम नाम का कीर्तन करने लगे।

श्री बी.एस. निष्किंचन जी महाराज

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