वह स्थान जहां ‘सीता जी’ ने रेत से बनाई ‘शिव प्रतिमा’

Edited By Jyoti,Updated: 27 Apr, 2021 01:54 PM

here the place where sita ji made shiva idol out of sand

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ राम की वनवास यात्रा से जुड़े जिन स्थलों के दर्शन इस बार आपको करवाने जा रहे हैं, उनमें वह स्थान विशेष रूप से शामिल है जहां सीता जी ने शिव जी की पूजा करने के लिए रेत से उनकी एक कच्ची प्रतिमा तैयार की थी।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
राम की वनवास यात्रा से जुड़े जिन स्थलों के दर्शन इस बार आपको करवाने जा रहे हैं, उनमें वह स्थान विशेष रूप से शामिल है जहां सीता जी ने शिव जी की पूजा करने के लिए रेत से उनकी एक कच्ची प्रतिमा तैयार की थी। अन्य स्थलों में इलाहाबाद का वह आश्रम शामिल है जहां से होकर कभी गंगा मां की धारा बहती थी। कहते हैं कि श्रीराम तथा भारद्वाज जी का मिलन इसी स्थान पर हुआ था। ये सभी स्थान उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में स्थित हैं।

सीता कुंड, सिंगरोर
यह स्थान शांगवेरपुर से 2 किलोमीटर दूर गंगा जी के किनारे पर है। यहां से श्रीराम ने गंगा जी को पार किया तथा सुमंत्र को वापस अयोध्या भेजा था। आज यहां एक प्राचीन मंदिर स्थित है, जहां पत्थर पर उकेरे तीन जोड़ी पवित्र चरण भी बने हैं।
(ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/52/74 से 77, मानस 2/99/2 से 2/101 दोहे तक)

राम जोईटा, चरवा
श्रीराम ने इलाहाबाद से लगभग 15 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में चरवा गांव में स्थित तालाब में स्नान करने के बाद यहीं रात्रि विश्राम किया था।
(ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/52/102,103 ; 2/53/1 से 35 तक पूरा अध्याय, मानस 2/104/1)

भारद्वाज आश्रम, इलाहाबाद
इलाहाबाद में एक टीले पर यह आश्रम स्थित है। पहले गंगा मां की धारा यहां से होकर बहती थी। श्रीराम तथा भारद्वाज का मिलन इसी स्थान पर हुआ था। यह स्थान ‘तीर्थ राज प्रयाग’ कहलाता है।
(ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/54/5 से 43; 2/55/1 से 11, मानस 2/105/4 से 2/108 दोहा)

त्रिवेणी, संगम, इलाहाबाद
इस स्थान को ‘तीर्थराज प्रयाग’ कहते हैं। श्रीराम ने स्वयं श्रीमुख से संगम की प्रशंसा की थी। गंगा, यमुना तथा सरस्वती का संगम यहीं होता है।
(ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/54/2,6,8, मानस 2/104/1 से 2/105/3)

राम जोईटा, चरवा
श्रीराम ने इलाहाबाद से लगभग 15 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में चरवा गांव में स्थित तालाब में स्नान करने के बाद यहीं रात्रि विश्राम किया था।
(ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/52/102,103 ; 2/53/1 से 35 तक पूरा अध्याय, मानस 2/104/1)

अक्षयवट, प्रयागराज
मां सीता ने अक्षयवट की पूजा व परिक्रमा की थी। अक्षय का अर्थ है जिसका क्षय (नाश) नहीं होता। (ग्रंथ उल्लेख : मानस 2/104/4)

शिव मंदिर, कुरई
सीता मां गंगा पार से एक मुट्ठी रेत लाई थीं। उस रेत की ‘कूरी’ (कच्ची प्रतिमा) बना उन्होंने भगवान शिव की पूजा की थी। बाद में यहीं शिव मंदिर की स्थापना हुई।
(ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/52/92, 93, मानस 2/101/1 से 2/103/ 1 ; 2/104 दोहा) 

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