Edited By Jyoti,Updated: 13 Jun, 2018 05:40 PM
अनुवाद एवं तात्पर्य: जो परब्रह्म के ज्ञाता हैं, वे अग्रिदेव के प्रभाव में, प्रकाश में, दिन के शुभक्षण में, शुक्लपक्ष में या जब सूर्य उत्तरायण रहता है, उन छ: महीनों में इस संसार से शरीर त्याग करने पर उस परब्रह्म को प्राप्त करते हैं।
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श्लोक-
अग्रिज्र्योतिरह: शुक्ल: षण्मासा उत्तरायणम्।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जना:॥ 24॥
अनुवाद एवं तात्पर्य: जो परब्रह्म के ज्ञाता हैं, वे अग्रिदेव के प्रभाव में, प्रकाश में, दिन के शुभक्षण में, शुक्लपक्ष में या जब सूर्य उत्तरायण रहता है, उन छ: महीनों में इस संसार से शरीर त्याग करने पर उस परब्रह्म को प्राप्त करते हैं।
जब अग्रि, प्रकाश, दिन तथा पक्ष का उल्लेख रहता है तो यह समझना चाहिए कि इस सबों के अधिष्ठाता देव होते हैं जो आत्मा की यात्रा की व्यवस्था करते हैं। मृत्यु के समय मन मनुष्य को नवीन जीवन मार्ग पर ले जाता है। यदि कोई अकस्मात् या योजनापूर्वक उपर्युक्त समय पर शरीर त्याग करता है तो उसके लिए निर्विशेष ब्रह्मज्योति प्राप्त कर पाना संभव होता है।
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