Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 Apr, 2020 06:17 AM
नागार्जुन अपने समय के विख्यात रसायन शास्त्री हुए हैं। उन्होंने अपनी चिकित्सीय सूझबूझ से ऐसी औषधियां तैयार कीं, जिनसे अनेक असाध्य रोगों का उपचार संभव हो सका है। वह अपनी प्रयोगशाला में दिन-रात काम में जुटे रहते थे और नित नई औषधियों की खोज करते रहते थे।
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नागार्जुन अपने समय के विख्यात रसायन शास्त्री हुए हैं। उन्होंने अपनी चिकित्सीय सूझबूझ से ऐसी औषधियां तैयार कीं, जिनसे अनेक असाध्य रोगों का उपचार संभव हो सका है। वह अपनी प्रयोगशाला में दिन-रात काम में जुटे रहते थे और नित नई औषधियों की खोज करते रहते थे।
जब वह वृद्ध हो चले तो उन्होंने एक बार राजा से कहा, ‘‘राजन! प्रयोगशाला का काम बहुत बढ़ गया है। अपनी अवस्था को देखते हुए मैं अधिक काम करने में असमर्थ हूं, इसलिए मुझे एक सहायक की जरूरत है। ’’
राजा ने नागार्जुन की बात सुनी और कुछ सोचकर कहा, ‘‘कल मैं आपके पास दो युवकों को भेजूंगा, आप उनकी कुशलता की परख करके चयन कर लें।’’
अगले दिन सवेरे ही दो नवयुवक नागार्जुन के पास पहुंचे। दोनों ही नवयुवकों की योग्यताएं लगभग समान थीं। अब नागार्जुन के सामने यह समस्या उठ खड़ी हुई कि उन दोनों में से किसे चुनें? बहुत सोच-विचार के बाद उन्होंने उन दोनों युवकों को एक-एक पदार्थ दिया और कहा, ‘‘यह क्या है, इस बारे में मैं तुम्हें कुछ नहीं बताऊंगा। आप स्वयं उसकी पहचान करें। और फिर इसका कोई एक रसायन अपनी मर्जी से बनाकर परसों तक मेरे पास ले आएं। उसके बाद ही मैं यह निर्णय करूंगा कि आप दोनों में किसे अपना सहायक बनाऊं।’’
वे दोनों युवक जैसे ही जाने को मुड़े, नागार्जुन ने फिर कहा, ‘‘अरे सुनो! घर जाने के लिए तुम्हें पूरे राजपथ को तय करना होगा।’’
दोनों युवक उनकी यह बात सुनकर हैरत में पड़ गए और सोचने लगे कि आचार्य उन्हें राजपथ से होकर ही जाने को क्यों कह रहे हैं? लेकिन आचार्य से इस संबंध में विवाद करना उन्होंने उचित नहीं समझा और वे वहां से चल दिए।
तीसरे दिन सायंकाल दोनों नवयुवक यथासमय आचार्य नागार्जुन के पास पहुंच गए। उनमें से एक नवयुवक बहुत खुश दिखाई दे रहा था और दूसरा कुछ मायूस। नागार्जुन ने पहले युवक से पूछा, ‘‘क्यों भाई, क्या तुमने उस पदार्थ से रसायन तैयार कर लिया है?’’
युवक ने तत्परता से उत्तर दिया, ‘‘जी हां।’’
नागार्जुन ने तुरंत तैयार रसायन की परख की और उस संबंध में युवक से कुछ सवाल भी किए, जिनका उसने सही उत्तर दे दिया।
तब नागार्जुन ने दूसरे युवक से पूछा, ‘‘तुम अपना रसायन तैयार कर क्यों नहीं लाए?’’
युवक ने उत्तर दिया, ‘‘आचार्य प्रवर! मैंने आपके दिए हुए पदार्थ को पहचान तो लिया था, लेकिन उसका रसायन तैयार न कर सका।’’
‘‘लेकिन क्यों?’’ नागार्जुन ने पूछा।
युवक ने उत्तर दिया, ‘‘मैं आपके आदेशानुसार राजपथ से गुजर रहा था। अचानक मैंने देखा कि एक पेड़ के नीचे एक बीमार और वृद्ध व्यक्ति पड़ा कराह रहा है और पानी मांग रहा है। कोई उसे पानी देने के लिए तैयार नहीं था। सब अपने-अपने रास्ते चले जा रहे थे। मुझसे उस वृद्ध की वह दयनीय दशा देखी नहीं गई और मैं उसे उठाकर अपने घर ले गया। वह अत्यधिक बीमार था। मेरा सारा समय उसकी चिकित्सा और सेवा-सुश्रुषा में बीत गया। अब वह स्वास्थ्य लाभ कर रहा है, इसलिए मैं आपके द्वारा दिए गए पदार्थ का रसायन तैयार नहीं कर पाया। आप मुझे क्षमा करें।’’
इस पर नागार्जुन के होठों पर मुस्कुराहट तैर आई और उन्होंने प्रसन्न होकर कहा, ‘‘मैं तुम्हें ही अपना सहायक नियुक्त करता हूं।’’
दूसरे दिन जब नागार्जुन राजा से मिले तो राजा ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘आचार्य मैं अब तक नहीं समझ पा रहा हूं कि रसायन बनाकर लाने वाले युवक के स्थान पर आपने उस युवक को क्यों अपना सहायक बनाना पसंद किया, जो रसायन बनाकर नहीं ला सका?’’
नागार्जुन ने कहा, ‘‘राजन मैंने उसका सही चयन किया है।’’
जिस युवक ने रसायन नहीं बनाया, उसने मानवता की सेवा की, जो एक चिकित्सक का पहला गुण होना चाहिए। दोनों युवक एक ही रास्ते से गुजरे लेकिन एक उस वृद्ध रोगी की सेवार्थ रुक गया और दूसरा उसकी अनदेखी कर चला गया। मुझे पहले ही ज्ञात था कि राजपथ पर पेड़ के नीचे एक बीमार मनुष्य पड़ा है। मैं खुद उसे अपने पास लाने की सोच रहा था कि तभी वे दोनों युवक आ गए। तब मैंने इनकी योग्यता की परख करने के विचार से उन्हें राजपथ से ही जाने का निर्देश दिया। रसायन तो बहुत लोग तैयार कर सकते हैं लेकिन अपने स्वार्थ को भूलकर मानवता की सेवा करने वाले सेवाभावी बहुत कम होते हैं।
मेरे जीवन का ध्येय ही मानव सेवा है और मुझे ऐसे ही व्यक्ति की आवश्यकता है, जो सच्चे मन से मानवता की सेवा कर सके। मुझे प्रसन्नता है कि आप द्वारा भेजे गए दोनों युवकों में से एक मानवता की सेवा करने वाला निकला। इसी कारण मैंने उसका चयन किया है।