क्यों झूठ बोलने पर कान पकड़कर मांगी जाती है माफ़ी ?

Edited By Jyoti,Updated: 19 May, 2019 12:09 PM

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हिंदू धर्म में कई ग्रंथ हैं, जिनमें मानव जीवन से जुड़ी ऐसे-ऐसे सूत्र दिए गए हैं जो व्यक्ति के जीवन के हर मोड़ पर मददगार साबित होते हैं।

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हिंदू धर्म में कई ग्रंथ हैं, जिनमें मानव जीवन से जुड़ी ऐसे-ऐसे सूत्र दिए गए हैं जो व्यक्ति के जीवन के हर मोड़ पर मददगार साबित होते हैं। इसके अलावा धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों में ऐसी बहुत सी परंपराएं भी वर्णित हैं जो प्राचीन समय से लेकर आज तक चली आ रही है। बता दें कि गौतम, वशिष्ठ, पराशर स्मृति व मनुस्मृति के आदि ग्रंथों में ज्ञान की ऐसी-ऐसी बातें बताई गई हैं, जिन्हें अगर जान लिया जाए तो लाइफ में मुश्किल से मुश्किल काम आसान हो जाता है।
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इन ग्रंथों में मानव जीवन से रहन-सहन के नियम और तरीकों के बारे में बताया गया है। इसमें, शरीर में पंचतत्वों के अलग-अलग प्रतिनिधि अंग माने गए हैं जैसे- नाक भूमि का, जीभ जल का, आंख अग्नि का, त्वचा वायु का और कान आकाश का प्रतिनिधि अंग। विभिन्न कारणों से शेष सभी तत्व अपवित्र हो जाते हैं, लेकिन आकाश कभी अपवित्र नहीं होता। इसलिए ग्रंथों में दाहिने कान को अधिक पवित्र माना जाता है। तो आइए जानते हैं इन ग्रंथों में वर्णित कुछ खास बातें-

मनु स्मृति के अनुसार, मनुष्य के नाभि के ऊपर का शरीर पवित्र है और उसके नीचे का शरीर मल-मूत्र धारण करने की वजह से अपवित्र माना गया है। कहा जाता है कि यही कारण है कि शौच करते समय यज्ञोपवित (जनेऊ) को दाहिने कान पर लपेटा जाता है क्योंकि दायां कान, बाएं कान की अपेक्षा ज्यादा पवित्र माना गया है। इसलिए जब कोई व्यक्ति दीक्षा लेता है तो गुरु उसे दाहिने कान में ही गुप्त मंत्र बताते हैं, यही कारण है कि दाएं कान को बाएं की अपेक्षा ज्यादा पवित्र माना गया है। गोभिल गृह्यसूत्र के अनुसार, मनुष्य के दाएं कान में वायु, चंद्रमा, इंद्र, अग्नि, मित्र और वरुण देवता निवास करते हैं। इसलिए इस कान को बहुत पवित्र माना जाता है।

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गोभिल गृह्यसूत्र का श्लोक
मरुत: सोम इंद्राग्नि मित्रावरिणौ तथैव च।
एते सर्वे च विप्रस्य श्रोत्रे तिष्टन्ति दक्षिणै।।

पराशर स्मृति के बारहवें अध्याय के 19 वें श्लोक में बताया गया है कि के छींकने, थूकने, दांत के जूठे होने और मुंह से झूठी बात निकलने पर दाहिने कान का स्पर्श करना चाहिए। इससे मनुष्य की शुद्धि हो जाती है।

पराशर स्मृति का श्लोक
क्षुते निष्ठीवने चैव दंतोच्छिष्टे तथानृते।
पतितानां च सम्भाषे दक्षिणं श्रवणं स्पृशेत्।।

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