होलाष्टक 2018: अपने कमजोर ग्रहों को बनाएं शक्तिशाली

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Feb, 2018 07:34 AM

holashtak 2018 build your weaker planets powerful

पौराणिक मान्यता है कि दैत्यराज हिरण्यकशिपु ने विष्णु भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए अनेक उपाय किए थे परंतु भक्त प्रह्लाद का वह बाल भी बांका न कर सका। जब वह अपनी बहन होलिका से मिला तो दोनों ने मिलकर प्रह्लाद को मारने की पूरी योजना फाल्गुन मास की...

जालंधर (वीना जोशी): पौराणिक मान्यता है कि दैत्यराज हिरण्यकशिपु ने विष्णु भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए अनेक उपाय किए थे परंतु भक्त प्रह्लाद का वह बाल भी बांका न कर सका। जब वह अपनी बहन होलिका से मिला तो दोनों ने मिलकर प्रह्लाद को मारने की पूरी योजना फाल्गुन मास की अष्टमी से ही आरम्भ कर दी थी ताकि किसी को त्यौहार में कोई संदेह भी न रहे। इसी कारण 8 दिन पहले से ही होलाष्टक आरम्भ हो जाते हैं। होलिका को वरदान था कि उसे आग जला नहीं सकती, उसने प्रह्लाद को गोद में बिठाकर आग में बैठने की योजना तो तैयार कर ली परंतु होली से एक दिन पहले जब होलिका दहन हुआ तो होलिका आग में जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद भगवान का नाम सिमरण करते हुए जीवित बच गया, तभी से हर साल होली जलाने की परम्परा है। 


क्यों मनाई जाती है ‘होली’
 पुराणों के अनुसार होलिका के जलने की खुशी में लोगों ने एक-दूसरे को रंग लगाकर खुशी का इजहार किया था, होली मनाने के पीछे अनेक मान्यताएं प्रसिद्ध हैं, माना जाता है कि द्वापर युग में फाल्गुन मास की पूर्णिमा को भगवान श्री कृष्ण ने बाल लीला करते हुए पूतना नामक राक्षसी को मारा था। इसी कारण पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मालवा आदि क्षेत्रों के लोग होलिका दहन पर गोबर से बने छोटे-छोटे उपलों की रस्सी में मालाएं बनाकर होलिका दहन से पूर्व उसका पूजन करके चढ़ाते हैं। एक मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने जब अपनी अखंड समाधि लगा ली थी तो कामदेव भगवान शंकर की समाधि तोडऩे के लिए वहां गया तो भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से उसे भस्म कर दिया था। 


कैसे खेलते हैं होली?
पहले तो लोग टेसू के फूलों के पीले पानी, गुलाल उड़ाकर तथा एक-दूसरे पर मलकर व परस्पर वैर-विरोध मिटाकर होली खेलते थे। महिलाएं, पुरुष और बच्चों द्वारा अपनी-अपनी टोलियां बनाकर अपने मित्रों और सगे-संबंधियों के घरों में जाकर होली खेलने की परम्परा काफी पुरानी है। बच्चे पिचकारियों में रंग भरकर एक-दूसरे पर फैंकते हैं। मंदिरों में रंग-बिरंगे पीले लाल फूलों की पत्तियों से होली खेलने की भी परम्परा चल रही है, परंतु आजकल होली का स्वरूप बदल गया है। शरारती लोग होली पर अंडे, मिट्टी और कीचड़, पेंट, ग्रीस आदि गलत चीजों का प्रयोग करके त्यौहार का महत्व कम करते हैं जो उचित नहीं है।


बदलते मौसम का है प्रतीक 
ऋतु चक्र के अनुसार यह त्यौहार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी अर्थात बसंत से जुड़ा होकर फाल्गुन मास के कृष्ण प्रतिपदा से उन्माद की ओर प्रेरित करने वाला है चैत्र मास के कृष्ण प्रतिपदा को लोग एक-दूसरे पर लाल, पीला, हरा रंग लगाकर परस्पर प्रेम, स्नेह और वैर-विरोध मिटाने का संदेश देते हैं। 

वैसे भी पतझड़ में जब वृक्षों के पत्ते झडऩे के पश्चात उन पर नई कोंपलें आ जाती हैं तो चारों तरफ हरियाली का सुहावना मौसम सभी को भाता है तो लोग एक-दूसरे पर रंग लगाकर प्रकृति के साथ खुशी सांझी करते हैं।

 

विष्णु एवं नृसिंह स्वरूप का करें पूजन
होलाष्टक के दिनों में भगवान विष्णु एवं भगवान के नृसिंह स्वरूप का पूजन विधिवत करना चाहिए, विष्णु सहस्त्रनाम और नृसिंह स्तोत्र का पाठ करना अधिक उत्तम है। इन दिनों में अपने कमजोर ग्रहों को शक्तिशाली बनाने के लिए विभिन्न रंगों की वस्तुओं से पूजन करना शुभफलदायक होता है। 


भगवान सूर्य के पूजन में कुमकुम, चन्द्रमा के लिए अवीर, मंगल के लिए चंदन एवं सिंदूर, बुध के लिए मेहंदी, बृहस्पति के लिए पीला केसर, पीला रंग अथवा हल्दी, शुक्र के लिए सफेद चंदन, माखन, मिश्री, दूध एवं दही, शनि के लिए नीले और काले रंग, राहू और केतू के लिए काले तिलों से पूजन करना चाहिए।

वीना जोशी
veenajoshi23@gmail.com

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