Edited By Lata,Updated: 03 Mar, 2020 01:09 PM
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से होलाष्टक मनाया जाता है। ज्योतिषीय आधार पर होलाष्टक के आठ दिनों में नकारात्मक
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फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से होलाष्टक मनाया जाता है। ज्योतिषीय आधार पर होलाष्टक के आठ दिनों में नकारात्मक ऊर्जा बहुत बढ़ जाती है। बता दें कि होलाष्टक में नववधू अपने मायके में ही रहती है। इस समय विवाह पक्के किए जाएं तो वे टूट जाते हैं। इन आठ दिनों में धर्म-कर्म-दान पुण्य कार्य करने चाहिएं। द्वापर युग में भी फाल्गुन की पूर्णिमा को श्रीकृष्ण ने पूतना का वध किया था। इसलिए पूतना यानी ढुंढा राक्षसी को जलाने के लिए हरियाणा, राजस्थान, पंजाब आदि क्षेत्रों में गोबर से बनी मालाएं आदि होलिका में जलाने का भी प्रचलन है। हिरण्यकशिपु की बढ़ती आसुरी प्रवृत्ति को देखते हुए भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया। हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रह्लाद ने विष्णु जी का नाम, जप, स्मरण शुरू अपने जन्म से ही कर दिया था।
होलाष्टक में ये उपाय करें
चिंताओं एवं समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए इन दिनों में विष्णु जी के साथ-साथ नृसिंह स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इसी प्रकार अपने आराध्यदेव के चरणों में निम्र पूजा सामग्री अर्पित करनी चाहिए।
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सूर्य के कारण कोई समस्या आ रही हो तो सूर्य को लाल फूल और कुमकुम अर्पित करें। चंद्रमा के लिए अबीर, मंगल के लिए लाल चंदन, बुध के लिए हरे फल एवं मेहंदी, बृहस्पति के लिए केसर, हल्दी युक्त दूध, शुक्र ग्रह की शांति के लिए सफेद चंदन, माखन और मिश्री, शनि के लिए काले तिल, राहू-केतु के लिए पंचगव्य।
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जिन जातकों का विवाह नहीं हो पा रहा हो अथवा मनपसंद जीवन साथी की प्राप्ति में बाधाएं आ रही हों तो 'अभिमंत्रित गौरी-शंकर रुद्राक्ष धारण करने से अनुकूलता मिलती है और मनचाहे जीवन साथी की प्राप्ति होती है।
संतान प्राप्ति के लिए अभिमंत्रित एकाक्षी सिद्ध श्रीफल भगवान शिव को चढ़ाएं, भगवान विष्णु को माखन-मिश्री का भोग लगाकर बांसुरी अर्पित करें तथा मनोकामना पूर्ति मंत्र जाप के साथ ही 'गर्भगौरी रुद्राक्ष धारण करें। मंत्र- श्रीकृष्ण:शरणं मम्।'
गुप्त शत्रुओं एवं शक्तिशाली दुष्टों के संहार के लिए इन होलाष्टकों में दतिया, हिमाचल की बगलामुखी देवी अथवा शिमला में हनुमान जी के सिद्धपीठ 'जाखू मंदिर में अभिमंत्रित एकाक्षी श्रीफल चढ़ाएं, 101 बंदरों को जिमाएं तथा बगलामुखी एवं शत्रुनाशक मंत्रों की 108 आहूतियों के साथ हवन कर, यंत्र धारण करें। शत्रुओं का अंत होगा तथा आपकी विजयश्री का डंका चहुं ओर बजेगा।