पितृदोष का भयानक असर कैसे करता है जीवन बर्बाद, प्रभाव से बचाएंगे ये उपाय

Edited By ,Updated: 18 Apr, 2017 02:26 PM

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ज्योतिष में पितृदोष का प्रबल कारक राहू, केतु को माना गया है। यदि उनका संबंध सूर्य, चंद्र, मंगल, शनि, गुरु आदि से हो तो व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के पितृदोषों की संभावना रहती है। सवार्थ चिंतामणि के अनुसार- राहू-केतु समायुक्ते बाधा पैशाचकी स्मृता।

ज्योतिष में पितृदोष का प्रबल कारक राहू, केतु को माना गया है। यदि उनका संबंध सूर्य, चंद्र, मंगल, शनि, गुरु आदि से हो तो व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के पितृदोषों की संभावना रहती है।


सवार्थ चिंतामणि के अनुसार-
राहू-केतु समायुक्ते बाधा पैशाचकी स्मृता।


निम्र स्तर में राहू पिशाच बाधा, व्यभिचार, विष द्वारा मृत्यु, सर्प के आकार का आकस्मिक प्रभावकारी (विस्फोटक) निवास, सर्प की बांबी एवं अतिवृद्धावस्था, कपटी या षड्यंत्रकारी, असत्यवादी आचरण माना गया है। उच्च स्तर में राहू ध्यान, धारणा समाधि आदि का कारक है।


केतु-नागलोक, चर्मरोग, भयानक भूल, नीच आत्माओं से कष्ट, कुत्ते या मुर्गे का काटना आदि कार्यों का कारक माना जाता है। उच्च स्तर में मोक्ष प्राप्ति, ब्रह्मज्ञान, मंत्र शास्त्र, गणेश, शिव या विष्णु आदि का कारकत्व इसे प्राप्त है।


वृहत पाराशर होरा शास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में ‘पूर्व जन्मशाप द्योतक’ अध्याय में अनेक पितृदोषों या शापों का वर्णन किया गया है जिनका प्रभाव जातक के सम्पूर्ण जीवन पर पड़ता है परन्तु हम केवल पितृशापों के द्वारा वंशानुगत संतानहीनता या वंश क्षय आदि की जानकारी प्राप्त करेंगे तथा उक्त प्रकार के पितृदोषों का शास्त्रोक्त (शमन) का वर्णन करेंगे।


पितृशाप 10 प्रकार के हैं- (1) अनापत्य योग (नि:संतान योग), (2) सर्पशाप, (3) पितृशाप (4) मातृशाप, (5) भ्रातृशाप, (6) मामाशाप, (7) पत्नीशाप, (8)ब्रह्मशाप, (9) प्रेतशाप, (10) कुलदेव के शाप से पुत्रहीनता।  संतान प्राप्ति के लिए इन शापों की विधिवत शांति जरूरी है।


संतान प्रतिबंधक योग यदि देवशाप से हो तो निम्नलिखित ग्रह बाधा कारक होते हैं जिनकी शांति उस दिन एवं उस ग्रह की विशिष्ट पूजा से होती है।


सूर्य -पितृदेव या भगवान शिव या वरुण या गरुड़ के शाप से संतानहीनता है तो रविवार को व्रत करें एवं त्रयम्बक मंत्र का जप करें, हरिवंश पुराण का पाठ करें व श्रवण करें। पीपल या बड़ का पूजन व परिक्रमा करें।


चंद्र -माता दुर्गा या माता के शाप से संतानहीनता या क्षीण चंद्र द्वादशी के दोष से संतानहीनता होती है। अत: सोमवार को शंकर जी का पूजन, ब्राह्मणों को भोजन, गौ-वस्त्र, अन्न व स्वर्ण दान दें।


मंगल-शत्रु या ग्रामदेव या स्वामी कार्तिकेय के शाप से संतानहीनता आती है। अत: दुर्गा सप्तशती का पाठ नवरात्रि में कराएं या नौ कन्याओं को भोजन कराएं।


बुध-विष्णु के शाप से बिल्ली, मछली या बाल हत्या के शाप से संतानहीनता आती है इसलिए बुधवार या शुक्रवार को संतान-गोपाल का पाठ करें। रुद्र के मंत्रों से शंकर जी का अभिषेक करें।


गुरु-स्वयं के गुरु या कुलगुरु का शाप या यक्षिणी का शाप, फलदार वृक्षों को नष्ट करने का शाप आदि से संतानहीनता आती है। अपने कुलगुरु का पूजन करें। उन्हें भोजन, अन्न, वस्त्र व धन का दान दें या विधिवत औषधि मंत्र आदि का प्रयोग करें तथा अनुष्ठान कराएं।


शुक्र - वृक्ष को फलहीन करने से, साध्वी स्त्री के शाप से, गौ के शाप से या पूजनीय पुरुषों के शाप से संतानहीनता होती है। अत: गौ-दान, सधवा ब्राह्मण स्त्री को भोजन कराएं।


शनि-पीपल का वृक्ष नष्ट करने से, यम के शाप से, पितृशाप से संतानहीनता होती है। रुद्र पाठ, कुलदेव की पूजा से लाभ होता है। नागपंचमी व्रत करना चाहिए।


केतु-ब्राह्मण के शाप से। अत: ब्रह्मभोज व इन्हें दान-दक्षिणा देने से लाभ होता है।


मांदि-पितृशाप से। अत: पितरों के लिए ब्रह्मभोज करना चाहिए।


शुक्र, चंद्र व मांदियुक्त हो तो स्त्रियों में, गौ-हत्या के कारण संतानहीनता आती है। अत: गौ-दान करना चाहिए।


गुरु, केतु या मांदि के साथ हो तो ब्रह्म हत्या के कारण संतानहीनता आती है। अत: पितृपक्ष में ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा सहित भोजन कराने से संतान प्राप्ति होती है।

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