Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Nov, 2017 12:03 PM
हनुमानजी को प्राप्त अपार शक्तियों के कारण उन्हें परम शक्तिशाली तथा परिहार कहा जाता है। शिव पुराण के अनुसार हनुमान जी को, भगवान शिव का दसवां अवतार माना जाता है।
हनुमानजी को प्राप्त अपार शक्तियों के कारण उन्हें परम शक्तिशाली तथा परिहार कहा जाता है। शिव पुराण के अनुसार हनुमान जी को, भगवान शिव का दसवां अवतार माना जाता है। अपनी शक्तियों व पराक्रम से इन्होंने रावण तक को भयभीत कर दिया था। लेकिन इन विशाल शक्तियों का संग्रह उन्हें कैसे प्राप्त हुआ था बहुत कम लोगों को पता होगा।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, बाल्यकाल में जब हनुमान सूर्यदेव को फल समझकर खाने को दौड़े तो घबराकर देवराज इंद्रदेव ने हनुमानजी पर वज्र का वार किया। वज्र के प्रहार से हनुमान निश्तेज हो गए। यह देखकर वायुदेव बहुत क्रोधित हो उन्हें एक गुफा में ले गए और वहां जा कर उन्होंने समस्त संसार में वायु का प्रवाह रोक दिया। संसार में हाहाकार मच गया। तब परमपिता ब्रह्मा ने हनुमान को स्पर्श कर पुन: चैतन्य किया। उस समय सभी देवताओं ने हनुमानजी को वरदान दिए। इन वरदानों से ही हनुमानजी परम शक्तिशाली बने।
हनुमानजी को मिले इतने वरदान
भगवान सूर्य ने हनुमानजी को अपने तेज का सौवां भाग देते हुए कहा कि जब इसमें शास्त्र अध्ययन करने की शक्ति आ जाएगी, तब मैं ही इसे शास्त्रों का ज्ञान दूंगा। जिससे शास्त्रज्ञान में इसकी समानता करने वाला कोई नहीं होगा।
धर्मराज यम ने हनुमानजी को वरदान दिया कि यह मेरे दण्ड से अवध्य और निरोग होगा।
यक्षराज कुबेर ने वरदान दिया कि इस बालक को युद्ध में कभी भी विषाद नहीं होगा तथा मेरी गदा संग्राम में भी इसका वध न कर सकेगी।
भगवान शंकर ने यह वरदान दिया और कहा कि यह मेरे और मेरे शस्त्रों द्वारा भी अवध्य रहेगा।
देवशिल्पी विश्वकर्मा ने वरदान दिया कि मेरे बनाए हुए जितने भी शस्त्र हैं, उनसे यह चिरंजीवी होगा।
देवराज इंद्र ने हनुमानजी को यह वरदान दिया कि यह बालक आज से मेरे वज्र द्वारा भी अवध्य रहेगा।
जलदेवता वरुण ने कहा कि दस लाख वर्ष की आयु हो जाने पर भी मेरे पाश और जल से इस बालक की मृत्यु नहीं होगी।
परमपिता ब्रह्मा ने हनुमानजी को वरदान दिया कि यह बालक दीर्घायु, महात्मा और सभी प्रकार के ब्रह्मदण्डों से अवध्य होगा। युद्ध में कोई भी इसे जीत नहीं पाएगा। यह अपनी इच्छा अनुसार रूप धारण कर सकेगा, जहां चाहेगा वहां जा सकेगा। इसकी गति इसकी इच्छा के अनुसार तीव्र मंद होगी।
इसके अलावा जब हनुमानजी माता सीता को खोजते हुए अशोक वाटिका पहुंचे थे तब माता सीता ने भी उन्हें अमरता का वरदान दिया था।