Kundli Tv- माखनचोर कैसे बने जगद्गुरू

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Sep, 2018 02:39 PM

how makhanchor made jagadguru

अनंत नामों के स्वामी श्रीकृष्ण की लीलाओं की महिमा अपरंपार है। एक समय था कृष्ण ‘माखन चोर’ कहलाए और मां यशोदा को भी खूब छकाया अपनी बाल-लीलाओं द्वारा।

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अनंत नामों के स्वामी श्रीकृष्ण की लीलाओं की महिमा अपरंपार है। एक समय था कृष्ण ‘माखन चोर’ कहलाए और मां यशोदा को भी खूब छकाया अपनी बाल-लीलाओं द्वारा। मिट्टी खा जाने पर जब मुंह खोलकर देखा यशोदा मां ने तो दंग रह गई अखिल ब्रह्मांड का दर्शन करके। एक बार मूसल से बांध देने पर उसे गिरा दिया। ब्रजवासियों की समझ में नहीं आया कि अनंत कोटि ब्रह्मांड का स्वामी हमारे बीच अठखेलियां कर रहा है। सचमुच अनंत प्रभु की अनंत लीलाओं का वर्णन करना मुश्किल है। विषय है कि श्री कृष्ण जगद्गुरू कैसे कहलाए? भारतीय वसुंधरा में अवतरित होने वाले, बाल-लीलाओं से सभी को मोहित करने वाले, दुष्टों का संहार करने वाले भारत के ही नहीं बल्कि पूरे संसार के ‘गुरु’ कहलाए तो क्यों और कैसे?
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जगद्गुरू की उपमा सभी महापुरूषों को प्राप्त नहीं है। अर्जुन भी समझ नहीं पाया श्रीकृष्ण को कि क्या हस्ती हैं जबकि उनके साथ खूब खेले और बहुत सारा समय व्यतीत किया था। एक सखा की भांति समझते थे श्रीकृष्ण को अर्जुन।
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रणभूमि में जब अर्जुन ने अपने अस्त्र-शस्त्र में सुसज्जित धनुष बाण को श्रीकृष्ण के चरणों में रखकर कहा कि ‘‘मुझे युद्ध नहीं करना है, तब युग पुरूष श्री कृष्ण को अपना रूप प्रकट करना पड़ा और श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद की धरोहर ‘गीता’ का प्रादुर्भाव हुआ।’

अर्जुन के मार्गदर्शक बने श्रीकृष्ण और ज्ञान देकर, अपने स्वरूप का दर्शन कराके अर्जुन का मोह भंग किया तथा कर्म करने के लिए प्रेरित किया। तभी से मात्र अर्जुन के ही नहीं बल्कि विश्व के गुरु कहलाए श्री कृष्ण। इसके पूर्व अर्जुन उन्हें अपना गहरा मित्र समझते थे और अन्य ब्रजवासी भी नटखट नंद किशोर, कान्हा कहकर संबोधित करते थे।
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आज सारे संसार में जब मोह, लोभ-लालच, ईर्ष्या-द्वेष-वितृष्णा के बादल छाए हुए हैं, अज्ञानता का घोर अंधकार है और ऐसे समय में कृष्ण जैसे महापुरुष की आवश्यकता महसूस की जा रही है। स्वयं श्री कृष्ण महाराज भी कहते हैं, यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:

अर्थात- जब-जब धर्म की हानि होती है तब-तब मैं इस धराधाम पर अवतरित होता हूं और लोगों का मार्गदर्शन करता हूं।

‘कृष्णं वंदे जगद्गुरुम!’ 
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अर्थात-
कोटि-कोटि नमन है ऐसे जगद्गुरु को जिन्होंने गीता जैसा सक्षम ग्रंथ दिया जिसमें ‘ज्ञान-भक्ति-कर्म’ का निरूपण बड़े ही सुंदर तरीके से समझाया गया है बशर्ते हम उसे आत्मसात् करें। तोते की तरह पठन-पाठन से काम नहीं चलेगा, बल्कि उसकी गहराई में डुबकी लगाने की आवश्यकता है।

मूकं करोति वाचालं, पंगुं लंघयते गिरिम।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम।।

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यह चमत्कार हो सकता है। गूंगा बोलने लग जाए, पंगु पहाड़ों पर चढऩे को तत्पर हो जाए और श्रीकृष्ण कृपा से ही परमानंद की प्राप्ति होगी। तो नमन है ऐसे जगद्गुरू को जो आज भी ज्ञान की रोशनी दे रहे हैं, आवश्यकता है पहचानने की। 
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