Edited By ,Updated: 18 Jan, 2017 01:22 PM
इस दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति की यह इच्छा होती है कि सभी लोग उसकी प्रशंसा करें। उसके कार्य को सराहा जाए। लोग उससे मिलना एवं बात करना पसंद करें। यह विचार तो आता ही है कि मैं अपने
इस दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति की यह इच्छा होती है कि सभी लोग उसकी प्रशंसा करें। उसके कार्य को सराहा जाए। लोग उससे मिलना एवं बात करना पसंद करें। यह विचार तो आता ही है कि मैं अपने आप में ऐसा क्या आकर्षण पैदा करूं, जिससे लोग मेरी ओर खिंचे चले आएं। आपने कभी चुंबक को देखा होगा कि कैसे वो लोहे को अपनी ओर आकर्षित करता है और कैसे स्वयं लोहे की ओर आकर्षित हो जाता है। इसका कारण यह है कि उसके स्वभाव में ही आकर्षण है। इसी प्रकार हम सबके भीतर भी ऐसा ही एक चुंबक है और वह है विचार का चुंबक जो सदैव अपने ही जैसे विचारों को आकर्षित करता है। हर भेजी गई चीजें स्रोत तक यानी आप तक लौटकर आती हैं। अर्थात हम जो बोते हैं वही काटते हैं और उसी प्रकार हम जैसा भी सोचते हैं वैसा ही पाते जाते हैं अर्थात फल हमारी सोच पर निर्भर करता है।
जैसे कि ओस की एक बूंद अगर सीप में गिरे तो मोती बन जाती है और यदि विषधर के मुंह में गिरे तो विष बन जाती है। कहने को तो वह बूंद एक ही है परंतु उसके प्रारब्ध भिन्न हैं। कारण, उसे आकर्षित करने वाले व उनका व्यवहार भिन्न है। इसलिए यह तो आप पर निर्भर है कि आपको भविष्य में विष चाहिए या अमृत। इसका तात्पर्य यह है कि हम वैसा ही बन जाते हैं जैसा हम सोचते हैं या जैसा विश्वास रखते हैं।
महान व्यक्तित्वों में इतना आकर्षण होता है कि वे जिस स्थान पर खड़े हो जाते हैं, लोग अपने आप उनके चारों ओर एकत्रित हो जाते हैं। उनके क्रियाकलाप, आचरण, व्यवहार तथा उनके सद्गुण सहज ही साधारण कोटि के व्यक्तियों का मन मोह लेते हैं।