इस 1 अक्षर को जानकर, जो चाहो वो पाओ

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 12 Dec, 2019 09:20 AM

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ओ३म् परमपिता परमात्मा का निज नाम है। सभी वेद और शास्त्रों में ओ३म् की महिमा का गान किया गया है। कठोपनिषद में यमराज ने नचिकेता को उपदेश देते हुए कहा है कि जिस शब्द का वेद बार-बार वर्णन करते हैं,

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ओ३म् परमपिता परमात्मा का निज नाम है। सभी वेद और शास्त्रों में ओ३म् की महिमा का गान किया गया है। कठोपनिषद में यमराज ने नचिकेता को उपदेश देते हुए कहा है कि जिस शब्द का वेद बार-बार वर्णन करते हैं, सब तप जिसे पुकारते हैं, जिसको चाहते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, सार रूप में वह शब्द तुझे बदलाता हूं। वह शब्द ओ३म् है। यह ओ३म् अविनाशी अक्षर है, यही ब्रह्म है, यही सबसे परे सूक्ष्म है। इसी अक्षर को जानकर जो कोई कुछ चाहता है, वह उसे मिल जाता है।

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गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को ओ३म् की महिमा बताते हुए कहते हैं कि, ‘‘जो पुुरुष ओ३म् अक्षर अविनाशी ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ, उसका अर्थ विचार करता हुआ शरीर को छोड़कर जाता है, वह परम गति मोक्ष को पाता है।’’

महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने ईश्वर का सर्वोत्तम और निज नाम ओ३म् को बताया। सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में ईश्वर के नामों की व्याख्या करते हुए महर्षि दयानंद ने ईश्वर का मुख्य नाम ओ३म् बताया है और अन्य नाम गुण, कर्म और स्वभाव के अनुसार बताए हैं।

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ओ३म् का जप कैसे करें 
योगदर्शन में प्रभु का वाचक शब्द प्रणव ओ३म् ही बताया है, जिसका अर्थ है जिससे ब्रह्म की उत्तम रीति से स्तुति की जाए। इस ओ३म्  के जप का भाव है उसके अर्थ को भली-भांति समझ कर अपने जीवन में उसके अनुकूल आचरण करना।

शब्द शून्य : नेत्र बंद, कान बंद, होठ बंद, मुख में जिह्वा अचल, प्राण सम, सम्पूर्ण भावना से ओ३म् की स्थिति में स्थित उ आत्मा अ ब्रह्म में समाहित हूं। ऐसी भावना में अविचलता के साथ आसन पर बैठें।

विचार शून्य: आत्म संयम के द्वारा अपने मस्तिष्क को सब विचारों तथा चिंतनों से सर्वथा मुक्त बंद करो। जिस प्रकार सुषुप्ति में आप काम मस्तिष्क सब प्रकार के विचारों और चिंतनों से मुक्त होता है। इसी प्रकार बुद्धि के अभ्यास से सब प्रकार के विचारों से शून्य होकर अपने चिंतन को आत्मरत करें।

गति शून्य : ओ३म् के ध्यान में पत्थर की मूर्ति के समान स्थिर हो जाएं। शरीर का कोई भी भाग हिलने न पाए। ओ३म् के स्वरूप व उसकी आकृति की किसी प्रकार कोई कल्पना न करें। यदि ब्रह्म के किसी भी स्वरूप या आकृति की कल्पना की तो आपको उस काल्पनिक स्वरूप का ही दर्शन होगा। ब्रह्म के वास्तविक स्वरूप का नहीं। 

वर्ण शून्य : ब्रह्म के स्वरूप के विषय में किसी भी प्रकार के वर्ण रंग की कल्पना नहीं करनी चाहिए। कल्पना करने से वही रंग दृष्टि में छा जाता है। ओ३म् या ब्रह्म आदित्य वर्ण है। प्राकृतिक जितने भी वर्ण व प्रकाश हैं, उन सबसे भिन्न उसका वर्ण और प्रकाश है।

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हमें ओ३म् की महिमा जानकर उसे याद रखते हुए संसार में उत्तम कर्म करते हुए जीवन बिताना चाहिए। ओ३म् का अर्थ रक्षक और पालक भी है। ओ३म् तत् सत् ऐसा तीन प्रकार का सच्चिदानंद स्वरूप परमात्मा का नाम कहा है। उसी से सृष्टि के आदिकाल में ब्राह्मण वे, तप, यज्ञ आदि रचे गए हैं। इसलिए वेद का उपदेश करने वाले ब्रह्मवादी पुरुषों की शास्त्र विधि से नियत यज्ञ, दान और तप आदि की क्रियाएं सदा ओ३म्  नाम का उच्चारण करके की जाती हैं। ओ३म् की महिमा में बहुत ही सुंदर पंक्तियां लिखी गई हैं -
ओ३म् है जीवन हमारा ओ३म् प्राणाधार है,
ओ३म् है कर्ता विधाता, ओ३म्  पालनहार है
ओ३म् ही है दु:ख विनाशक ओ३म्  सर्वानंद है
ओ३म् है बल तेजधारी ओ३म्  करुणाकंद है।
ओ३म् सबका पूज्य है हम ओ३म्  का पूजन करें,
ओ३म् ही के जाप से हम शुद्ध अपना मन करें।
ओ३म् का गुरुमंत्र जपने से रहेगा शुद्ध मन,
बुद्धि दिन प्रतिदिन बढ़ेगी, धर्म में होगी लगन।
ओ३म् के जाप से हमारा ध्यान बढ़ता जाएगा,
अंत में यह ओ३म् हमको मुक्ति तक पहुंचाएगा।

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