शुभ मुहूर्त निकालते समय रखा जाता है, इन बातों का ध्यान

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Jun, 2021 10:34 PM

how to create shubh muhurat

हमारे ऋषि-मुनियों ने अपनी दिव्य दृष्टि से यह निर्धारित किया था कि अमुक नक्षत्र, तिथि, वार और लग्न इत्यादि देखकर किसी भी काम को करना शुभ होता है। कारण उस शुभ बेला में वायुमंडल में ऐसी अद्भुत शक्तियां विद्यमान होती हैं

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हमारे ऋषि-मुनियों ने अपनी दिव्य दृष्टि से यह निर्धारित किया था कि अमुक नक्षत्र, तिथि, वार और लग्न इत्यादि देखकर किसी भी काम को करना शुभ होता है। कारण उस शुभ बेला में वायुमंडल में ऐसी अद्भुत शक्तियां विद्यमान होती हैं जिसमें कोई भी शुभ काम करने से सफलता मिलती है इसीलिए शुभ मुहूर्त निकालते समय कुछ बातों का ध्यान रखा जाता है।

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शुक्र दोष: मुहूर्त निकालते समय शुक्र दोष का ध्यान रखते हैं क्योंकि शुक्र सांसारिक सुख-सौंदर्य का कारक है। सभी पंचांगों में शुक्रास्त एवं शुक्रोदय का समय दिया रहता है कि यह कब तक अस्त होगा और कब उदय। उदय होने की दिशा का भी उल्लेख पंचांग में होता है। शुक्र के बालत्व, वृद्ध और अस्त के समय स्थायी कार्य नहीं किए जाते हैं।

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अधिक या क्षयमास: दो अमावस्याओं के बीच में सूर्य की संक्रांति नहीं पड़ने से अधिक मास और जब दो अमावस्याओं के बीच अर्थात एक चंद्रमास में सूर्य की दो संक्रांतियां हों तो क्षयमास माना जाता है। अधिक मास और क्षयमास में भी शुभ कार्य का मुहूर्त नहीं बनता है।

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भद्रा: चंद्रमा यदि मेष, वृष, मिथुन या वृश्चिक राशि में हो तो भद्रा का वास स्वर्ग में, कन्या, तुला, धनु या मकर में हो तो भद्रा पाताल लोक में तथा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में हो तो मृत्युलोक में भद्रा का वास होता है। भद्रा जिस समय जहां होती है, उसका फल उसी जगह होता है। यात्रा और विवाह आदि शुभ कार्य भद्रा में करना मना है।

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वार-बेला : चार पहर का दिन और चार पहर की रात होती है। एक पहर के आधे भाग को अद्र्ध पहर कहते हैं। रविवार को चौथा और पांचवां पहर, सोमवार को दूसरा और सातवां, मंगलवार को दूसरा और छठा, बुधवार को तीसरा और पांचवां, गुरुवार को सातवां और आठवां, शुक्रवार को तीसरा और चौथा तथा शनिवार को पहला, छठा और आठवां अद्र्ध पहर यानी वारबेला कहा जाता है।

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तिथियों की संज्ञा : 1, 6, 11, तिथि नंदा, 2, 7, 12वीं तिथि भद्रा, 3, 18, 13वीं तिथि जया, 4, 9, 14 की तिथि रिक्ता और 5, 10, 15वीं तिथि को पूर्णा तिथि कहते हैं। शुक्रवार को नंदा, बुधवार को भद्रा, मंगल को जया, शनिवार को रिक्ता, गुरुवार को पूर्णा तिथि हो तो सिद्ध योग बनता है। सारांश यह है कि जन्म मास, जन्म तिथि, भद्रा, पिता की मृत्यु तिथि, क्षय तिथि, वृद्धि तिथि, अधिक या क्षयमास, तेरह दिन का पक्ष, वार बेला और शुक्रास्त में शुभ कार्यों को करना मना है। 

 

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