Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 May, 2018 05:29 PM
जिंदा रहने के लिए भोजन जरूरी है। भोजन से भी ज्यादा पानी जरूरी है। पानी से भी ज्यादा वायु जरूरी है। वायु से भी ज्यादा आयु जरूरी है, मगर मरने के लिए कुछ भी जरूरी नहीं है। यूं ही बैठे-बैठे मर सकता है आदमी। आदमी केवल दिमाग की नस फटने और दिल की धड़कन...
जिंदा रहने के लिए भोजन जरूरी है। भोजन से भी ज्यादा पानी जरूरी है। पानी से भी ज्यादा वायु जरूरी है। वायु से भी ज्यादा आयु जरूरी है, मगर मरने के लिए कुछ भी जरूरी नहीं है। यूं ही बैठे-बैठे मर सकता है आदमी। आदमी केवल दिमाग की नस फटने और दिल की धड़कन रुकने से नहीं मरता बल्कि उस दिन भी मर जाता है जिस दिन उसके सपने मर जाते हैं, उसकी उम्मीदें मर जाती हैं और फिर मरा हुआ आदमी दोबारा नहीं मरता। आदमी अपने सपनों और अपनी उम्मीदों से जिंदा है।
मरना तो सबको है, पर जीवन में एक बार ही मरना। रोज-रोज नहीं मरना। इंसान अपनी नासमझी के कारण रोज मरता है। कभी निराशा में, कभी मूर्च्छा में, कभी अहंकार में, कभी कुंठा में मरता है। इन्हें अपने पास मत आने दो, आते हैं तो अपने ऊपर हावी मत होने दो।
जिंदगी में आने वाली परेशानियों से लडऩा है, लाड नहीं करना है। जीवन में आई चुनौतियां भी एक चुनाव है। इस चुनाव में भी तुम्हें जीतना है। तुम्हें इस निराशा के चक्र से बाहर निकलना होगा कि मैं कुछ नहीं कर सकता। मैं कहता हूं कि कौन-सा काम है, जो तुम नहीं कर सकते?
अपने साहस को मजबूत बनाइए और आज ही अपने गंतव्य की ओर चल पड़िए। सफलता तुम्हारा इंतजार कर रही है। यद्यपि ईश्वर तुम्हारे साथ हर पल है परन्तु पहला कदम तो तुम्हें ही उठाना होगा।
अच्छा सेनापति वह होता है जो अपनी फौज को कभी कमजोर नहीं होने देता। उसका मनोबल नहीं टूटने देता। तुम भी अपने सेनापति हो। जिंदगी में कोई दुख और मुसीबत आए तो मनोबल मत टूटने दें। ध्यान रखें कमजोर शरीर हो और मजबूत मन हो तो काम चल जाएगा लेकिन कमजोर मन हो और बलिष्ठ शरीर हो तो काम नहीं चलेगा। जीवन के विकास के रास्ते शरीर से नहीं मन से तय होते हैं। उसे विश्वास से भरिए। आपकी हर सांस आस-विश्वास लिए हुई हो। हर हाल में मस्त रहिए।
अपने दिल को छोटा न करें। पांव में जूते नहीं तो दिल को छोटा मत करिए बल्कि सोचिए कि दुनिया में हजारों लोग ऐसे हैं जिनके पांव ही नहीं हैं।
किसी ने लिखा है पैर से अपाहिज एक भिखारी सदा प्रसन्न और खुश रहता था। किसी ने पूछा, ‘‘अरे भाई! तुम भिखारी हो, लंगड़े भी हो, तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है। फिर तुम इतने खुश क्यों रहते हो? क्या बात है?’’
वह बोला, ‘‘बाबू जी! भगवान का शुक्र है कि मैं अंधा नहीं हूं। भले ही मैं चल नहीं सकता, पर देख तो सकता हूं। जो नहीं मिला, मैं उनके लिए प्रभु से कभी शिकायत नहीं करता बल्कि जो मिला है, उनके लिए धन्यवाद जरूर देता हूं। जो नहीं मिला या फिर मिलते-मिलते रह गया उसके लिए पागल मत बनो। जो मिला है, उसका आनंद भोग लो वरना वह भी चला जाएगा।’’
पर सच्चाई तो यह है कि जीवन मिट जाता है लेकिन आदमी की चाहत नहीं मिटती। मन सबसे बड़ा भिखारी है।
नमक से कोई व्यंजन नहीं बनता लेकिन बिना नमक के भी कोई व्यंजन नहीं बनता। सब्जी और दाल के लिए भी नमक चाहिए। नमक न हो तो भोजन बेस्वाद है। जीवन में थोड़ा दुख न हो तो जीवन भी बेस्वाद है। दुख से सुख में स्वाद आता है। थोड़ा दुख भी जरूरी है। दुख मीठे के साथ नमकीन जैसा है। कुछ लोग हर हाल में मस्त होते हैं। दुनिया की कोई परेशानी उन्हें परेशान नहीं कर पाती।