हद से ज्यादा कंजूसी करेंगे तो पड़ेगा पछताना

Edited By Lata,Updated: 09 Sep, 2019 11:02 AM

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ललितपुर राज्य में प्रत्यूष नंदन कोठारी नामक धनवान लेकिन स्वभाव से अत्यंत कंजूस व्यक्ति रहता था।

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ललितपुर राज्य में प्रत्यूष नंदन कोठारी नामक धनवान लेकिन स्वभाव से अत्यंत कंजूस व्यक्ति रहता था। उसके पास सोने का एक बहुत पुराना बर्तन था। पूर्वजों द्वारा मिले इस अलौकिक पात्र के बारे में वह सोचता कि जब जीवन में कोई बेहद महत्वपूर्ण मौका आएगा, तब वह उस बर्तन को निकालेगा।
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एक बार उसके यहां ललितपुर राज्य के मंत्री प्रताप सिंह बुंदेला पधारे। उनके आने पर प्रत्यूष नंदन ने सोचा कि महज एक मंत्री के लिए स्वर्ण पात्र क्यों निकाला जाए? फिर उसने मन ही मन फैसला किया कि किसी बड़े आदमी के सामने ही इसे निकाला जाएगा। यह सोच कर उसने साधारण बर्तनों में ही मंत्री को खाना परोसा।

फिर एक दिन उसके यहां काशी के महान संत सदानंद स्वामी पधारे। तब उसने सोचा कि इस संत को भला सोने की क्या पहचान होगी। वह इस पात्र के महत्व को क्या समझेंगे। यह विचार कर कंजूस कोठारी ने अपना वह बर्तन नहीं निकाला और उन्हें भी साधारण पात्र में भोजन परोसा। कुछ दिनों के बाद राजा ललित आदित्य बर्मन कोठारी के घर पर आए। तब भी कोठारी ने राजा के साथ साधारण पात्र में ही भोजन किया। उसे यही लगा कि वह स्वर्ण पात्र राजा की तुलना में कहीं अधिक मूल्यवान है।
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जब कोठारी के बच्चों की शादी हुई, तब भी वह बर्तन नहीं निकाला और लोभ के कारण कोठारी ने उसे कभी देखा तक नहीं। दिन गुजरते गए। एक दिन कोठारी भी इस दुनिया से विदा हो गया। 13वीं के बाद साफ-सफाई की गई तो वह पात्र अत्यंत बुरी हालत में अन्य सामान के साथ मिला। वर्षों से पड़े रहने के कारण वह गंदा हो गया था। लगता ही नहीं था कि वह सोने का है। कोठारी के बच्चों ने काम की सारी चीजें निकालकर पास रख लीं और वह बर्तन नौकरों को भोजन करने के लिए दान में दे दिया।

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