Edited By Jyoti,Updated: 01 Aug, 2018 12:45 PM
हिंदू धर्म के अनुसार सावन भगवान शिव का प्रिय माह है। जिस कारण इस महीने में भोलेनाथ के भक्त उनकी प्रिय कांवड़ यात्रा निकालते हैं। लेकिन यह यात्रा कैसे और कब शुरू हुई इसके बारे में शायद ही किसी को पता होगा।
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हिंदू धर्म के अनुसार सावन भगवान शिव का प्रिय माह है। जिस कारण इस महीने में भोलेनाथ के भक्त उनकी प्रिय कांवड़ यात्रा निकालते हैं। लेकिन यह यात्रा कैसे और कब शुरू हुई इसके बारे में शायद ही किसी को पता होगा। तो आईए जानते हैं, कि इससे जुड़ी मान्यताओं का क्या कहना है। कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सबसे पहले कांवड़िया भगवान राम थे। उन्होंने सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल लाकर बाबा धाम के शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। इसके अलावा कांवड़ से जुड़ी कई और कथा प्रचलित हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार है सबसे पहले भगवान शिव के परमभक्त परशुराम ने सबसे पहली कांवड़ उठाई थी। उन्हें पहला कांवड़ भी माना जाता है।
वहीं कुछ लोगों का मानना है कि श्रवण कुमार ने कांवड की परंपरा की शुरुआत की थी। वह अपने दृष्टिहीन माता-पिता की हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा को पूरा करने के लिए उन्हें कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार गंगा स्नान करान लाए थे। माना जाता है तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई। वहीं अगर हिंदू पुराणों की मानी जाए तो इस यात्रा की शुरुआत समुद्र मंथन के समय हुई थी। समुद्रमंथन के दौरान निकले हलाहल विष को पीने के बाद भगवान शिव का गला नीला हो गया था। साथ ही उनके शरीर में बुरा असर पड़ने लगे थे। जिसे देखकर देवता चिंतित हो उठे।
विष के प्रभाव को कम करने के लिए चिंतित देवताओं ने पवित्र और शीतलता का पर्याय गंगा जंल शिव के शरीर में चढ़ाया। गंगा जल से शिवजी का जलाभिषेक करने से कुछ ही समय में देवताओं की मेहनत रंग लाई और भोलेनाथ का शरीर सामान्य होने लगा। इसी कार्य को आगे बढ़ाते हुए कांवडिये हरिद्वार से गंगा जल लेकर नीलकंठ महादेव में चढ़ाते हैं। यह यात्रा सदियों से चली आ रही है। तो एेसे शिव की इस प्रिय कांवड़ यात्रा को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित है।
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